SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 60
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वृहद पाराशर स्मृति १८४ गृहस्थाश्रमे पत्र वर्णनम् : ७७१ पुत्र की परिभाषा, पुत्र पुन्नाम नरक से पिता को बचाता है अतः वह पुत्र कहा गया है। इसलिए पुत्र का संस्कार करना उस का कर्तव्य माना गया है पुत्र यदि धर्मज्ञ हो तो पिता को स्वर्ग गति होती है, १८५-१६२ पुत्र का गया में पिता का श्राद्ध १६३ पुत्र का कर्तव्य और उसका लक्षण यथा जीवतो वाक्यकरणात् क्षयाहे भूरि भोजनात् । गयायां पिण्डवानाच्च त्रिभिः पुत्रस्य पुत्रता ॥ अर्थात् ये तीन लक्षण जिसमें हैं उसी में पुत्रत्व है । जीते जी पिता की आज्ञा पालन, श्राद्ध के दिन ब्राह्मण भोजन कराने वाला और गया में पिण्ड देने वाला १९४-१९६ पिता के लिए वृषोत्सर्ग १६७-१९८ साध्वी स्त्री का लक्षण तथा सास श्वसुर की सेवा करे १६४ सन्तानोत्पत्ति-पुत्र और पुत्री समान २०० ___ आचार वर्णनम् : ७७३ ४० संस्कार, सदाचार की प्रशंसा हीनाचार की निन्दा २०१-२०७ मनुष्य को विद्या पढ़ना, शास्त्र पढ़ना, सदाचार पर निर्भर है। आचारहीन मनुष्य कोई कम में सफल नहीं होता है २०८-२११ शौच वर्णनम् : ७७४ । शौचाचार भावशुद्धि के सम्बन्ध २१२-२१६ स्त्रियों में रमण करने वाले वित्तपरायण, मिथ्यावादी, हिंसक की शुद्धि कभी नहीं होती है २१७ प्रतिमह (दान) वर्णनम् : ७७५ मूर्ख को दान देने से दान का फल नहीं होता है २१८-२२१ दाने लेने वाला मूर्ख और दाता भी नरक में जाता है २२२-२२६ दान-पात्र २२७-२२८ हाथी, घोड़े और नवश्राद का दान लेने वाला हजार वर्ष तक नर्क में रहता है २२६-२३१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002787
Book TitleSmruti Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagsharan Sinh
PublisherNag Prakashan Delhi
Publication Year1993
Total Pages636
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy