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________________ ५६ विष्णु की प्रतिमा, पृथिवी, सूर्य की प्रतिमा तथा गाय यह सत्पात्र को देने से दाता को तीन लोक का फल होता है भोजन दान के समय पर चरित्रवान का सत्कार करना तथा अनाचारी पुरुषों को बिलकुल वर्जित का विधान दही, दूध, घी, गंध, पुष्पादि जो अपने को देवे ( प्रत्याख्येयं न कर्हिचित् ) उसे वापस नहीं करना जो ब्राह्मण सदाचारी दान लेने योग्य है और वह दान लेवे तो उसे स्वर्ग का फल होता है दान देने के सम्बन्ध की बातों का विवरण त्याज्य वर्णनम् : ७७८ वृहद पाराशर स्मृति Jain Education International २३२ For Private & Personal Use Only २३३-२३७ २३८ आचार का वर्णन, गृहस्थ के कर्तव्य और भोज्य अभोज्य की विधि २४६-२७६ भोजन में निषेध वस्तु २७७-२८२ जिनका अन्न खाना निषेध है उनका वर्णन २८३-२६२ इष्टका यज्ञ जो कि द्विजातियों को करने चाहिए दर्श, पौर्णमास्य और चातुर्मास्य यज्ञों का विधान स्नातक की परिभाषा २३६-२४० २४१-२४८ सोम याग और इष्टका पशु यज्ञ का माहात्म्य श्रद्धा से दान का माहात्म्य जो जिसका अन्न खाता है वैसा ही उसका मन होता है । ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य और शूद्रादि वर्ण के अन्न की शुद्ध अशुद्ध की सूची बताई है । जिनसे भिक्षा नहीं लेनी है उनका भी निर्देश है रजस्वला स्त्री छुआ हुआ अन्न, कुत्ते और कौवे के जूठे अन्न तथा जो अन्न अग्राह्य हैं जो अन्न अभोज्य होने पर भी ग्राह्य है उसको विशेष रूप से वर्णन अभक्ष्य वर्णनम् : ७८५ जिन शाकों को नहीं खाना चाहिये उनके नाम बताये हैं ३२०-३२२ अति संकट पर अर्थात् प्राण जाने पर जो अभक्ष्य है उनका वर्णन ३२३-३२४ २६३-२६६ २६७ २६८-३०३ ३०४-३०५ ३०६-३१२ ३१३-३१६ ३१७ www.jainelibrary.org
SR No.002787
Book TitleSmruti Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagsharan Sinh
PublisherNag Prakashan Delhi
Publication Year1993
Total Pages636
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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