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________________ आङ्गिरसस्मृति प्रस्तास्त शुद्ध होने पर सकामी व निष्कामीजन के लिए भोजन का विधान २६८-३०० मातापितभ्यां पितुःदानं ग्रहणञ्च : २९८१ अग्निहोत्र वर्णन दत्तपुत्र वर्णन ३०२ माता-पिता द्वारा देने और लेने का विधान ३०३-३१३ पुत्र संग्रह अवश्य करना चाहिए ३१४-३१५ अपुत्र की कहीं गति नहीं ३१६ पुत्रवान् की महत्ता का वर्णन ३१७-३२३ पुत्र उत्पन्न होने पर उसका मुख देखना धर्म है ३२४-३२६ वृत्तिदत्तादि पुत्रों का वर्णन ३२७-३३५ सगोत्रों में न मिले तो अन्य सजातियों में से पुत्र को ले अथवा सवर्ण में ले ३३६-३३७ असगोत्र स्वीकृति में निषेध ३३८-३४२ विवाह में दो गोत्रों को छोड़ने का विधान ३४३-३४४ अभिवन्दनादि में दो गोत्र का वर्णन ३४५-३४६ गोत्र और ऋषियों का विचार ३४७-३५१ दत्तजादि का पूर्व गोत्र ३५२-३५८ भ्रातपुत्रादिपरिग्रहवर्णनम् : २६८७ भ्राता के पुत्र को लेने में विवाह और होमादि की क्रिया नहीं केवल वाणीमात्र से ही पुत्र से ही पुत्र संज्ञा कही है ३५६ भ्राता के पुत्र का परिग्रह। ३६०-३६३ किसी पुत्र को लेने के लिए स्वीकृत होने पर यदि औरस पुत्र हो तो दोनों को रखे नहीं पाप लगता है ३६४-३६७ पुत्रदान के समय में जो कहा गया उसे पूरा करना चाहिए ३६८-३७५ भाई के पुत्र को लेने पर दिए हुए का समांश औरस गोत्र का चौथा हिस्सा ३७६-३८० दत्तक से औरस उपनीत न होने पर प्रायश्चित्त ३८१-३८२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002787
Book TitleSmruti Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagsharan Sinh
PublisherNag Prakashan Delhi
Publication Year1993
Total Pages636
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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