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________________ १७४ आङ्गिरसस्मृति भार्या पुरुष का पुत्र ग्रहण ३८३-३८८ उस समय की प्रतिज्ञा पूरी न करने से दोष ३८६-३६६ सपत्नियों में पुत्र के ग्रहण के समय जो रहे तो वह माता दूसरी सपत्नी माता ३६०-३६१ अन्य मातामहादि का स्थान ३६२-३९५ सपत्नी का पिता मातामह नहीं ३६६ पत्नी माता का तर्पण ३६६-३६८ प्रौपासनाग्नौ श्राद्धेऽप्रमादवर्णन : २६६१ सपत्नी माता का औपासन अग्नि में श्राद्ध ३६६ सपत्नी की अग्नि ४००-४०१ भाई के पुत्र के ग्रहण की विधि ४०२-४११ विभाग में भाई बराबर है ४१२-४१३ कामज पुत्रों का वर्णन ४१४-४३३ दत्तादि में विशेष ४३४-४४५ पत्नी की वैशिष्ट्यता ४४६-४४६ पुत्रों का ज्येष्ठ कानिष्ठय ४५० भोगिनी ४५१ भर्मणा, वा वातादि पत्नियों का वर्णन ४५६-४६४ धर्मपत्नी से उत्पन्न शिशु का ही स्पर्श मात्र कर्तव्य ४६५-४७१ सन्निधि भी स्पर्शमात्र कर्तृत्व ४७२-४७४ श्राद्धादि में अत्यन्त तृप्तिकर पदार्थ ४७५-४८१ गौरी दान वृषोत्सर्ग व पितरों को अत्यन्त तृप्ति कर कहे हैं ४८२-४८३ जकारपंचक का वर्णन ४८४-४८५ ग्रहण श्राद्ध का लक्षण ४८६-४६५ पनस स्थापित महान् विशेष है ४६६-५०३ अलर्कश्राद्ध ५०४-५०८ श्राद्धाहंदिव्यशाफवर्णन : ३००३ श्राद्ध के योग दिव्य शाक ५०६-५३० पनस की महिमा ५३१-५७१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002787
Book TitleSmruti Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagsharan Sinh
PublisherNag Prakashan Delhi
Publication Year1993
Total Pages636
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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