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________________ १७२ भ्रान्ति से पुत्रिकादि विवाह होने पर चन्द्रायणादि करने से स्वमात्र की शुद्धि २०५ -२०७ पुत्र होने पर व्रत का विधान २०८-२११ एक, दो, तीन और चार-पांच बार विवाहिता होने पर प्रायश्चित्त २१२-२१७ उससे तो वेश्या की विशेषता २१८-२२४ प्रविष्ट परपति के काय द्वारा संयोग होने पर प्रायश्चित्त २२५-२२७ अग्राह्य और ग्राह्यमूर्ति का वर्णन २२८-२२६ अग्राह्यमूर्ति का निवेद्य २३०-२३८ भगवत्प्रसाद ग्रहण में भक्षणविधि २३६ अत्युष्ण निवेदन करने पर नरकगामी होता है २४१-१४२ निवेदन प्रकार २४१-२४५ गृहस्थस्य रात्रावुष्णोवकस्नानवर्णनम् : २६७५ निवेदित का स्वीकार प्रकार निवेदित वस्तु बच्चों को दे गृहस्थ द्वारा रात्रि में गर्म जल से स्नान अभ्यङ्ग का विधान माध्याह्निक एवं क्षुर स्नान का वर्णन प्रातः सायं पर्वादि में अभ्यञ्जन स्नान सोदकुम्भ नान्दी श्राद्ध में अभ्यञ्जन स्नान कोशस्थित नदी स्नान से श्राद्ध विधान सङ्कल्प पितृ श्राद्ध के व्यत्यास में फिर करने का विधान शून्यतिथि में करने से फिर करे पितृ श्राद्ध के बाद कारुण्य श्राद्ध माता-पिता का श्राद्ध एक दिन हो तो अन्न से करे चात्रिक श्राद्ध ग्रहण में भोजन निषेध वृद्ध बाल और आतुरों को छोड़कर अत्यन्त आतुरों को भी छूट Jain Education International अङ्गिरसस्मृति For Private & Personal Use Only २४६-२४७ २४८ २४६-२५० _२५१-२५३ २५४-२५७ २५८-२६२ २६३-२६६ २६७ २६८-२७१ २७२ २७३-२७४ २७५-२७६ २७७-२७६ २८०-२६१ २८२-२६१ २६२-२६७ www.jainelibrary.org
SR No.002787
Book TitleSmruti Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagsharan Sinh
PublisherNag Prakashan Delhi
Publication Year1993
Total Pages636
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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