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________________ विश्वामित्रस्मति १४७ पितृ श्राद में वजित लोगों को देवता कार्य में बुलाने की छूट २०५-२०६ पित श्राद्ध में वस्त्रों के देने का माहात्म्य २०७ अलग-अलग कमाने वाले पुत्रों द्वारा पृथक्-पृथक् पितृ श्राद्ध २०८-२१० सन्यासी बहुत खाने वाला, वैद्य, नामधारी साधु, गर्भवाला (जिस की स्त्री गर्भवती हो) वेदों के आचरण से हीन व्यक्ति को दान और श्राद में न बुलावे गभं करने वाले द्विज के लिए वर्ण्य कर्म २११-२१७ स्नान, सन्ध्या, जप, होम, स्वाध्याय, पितृ तर्पण, देवताराधन और वैश्वदेव को न करने वाला पतित होता है अतः इन्हें नियम से करना प्रत्येक द्विजाति का कर्तव्य है २१८-२२४ २११ विश्वामित्रस्मृति १. नित्यनैमित्तिककर्मणां वर्णनम् : २६४५ ब्राह्ममुहूर्त, उषःकाल, अरुणोदय और प्रातः काल के मान का वर्णन नित्य औन नैमित्तिक तथा काम्य कर्म समय पर करने से सत्फल देते हैं ब्राह्ममुहूर्त में शौच से निवृत्त होकर अरुणोदय के पहले आत्मा के _लिए स्नान करे प्रात: जप करे और सूर्य को देखकर उप स्थान करे काल बीतने पर कोई कर्म करने से फल नहीं मिलता यदि किसी कारण से काल का लोप हो गया तो तीन हजार जप करने से उसका प्रायश्चित्त विधान है। जो व्यक्ति समय पर नित्यकर्मादि को करता है वह सम्पूर्ण लोगों पर जय पाकर अन्त में विष्णुपुर में जाता है प्रातः स्नान सन्ध्या और जप आवश्यक कर्म है । उत्तम, मध्यम और अधम सन्ध्या के भेद । शुचि या अशुचि हो, नित्यकर्म को कभी न छोड़े तीनों सन्ध्या काल में या तो पूर्व की ओर या उत्तर की ओर मुंह कर नित्यकर्म करे । दक्षिण पश्चिम की ओर मुंह करके नहीं ८-१४ १७-२१ २२-२५ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002787
Book TitleSmruti Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagsharan Sinh
PublisherNag Prakashan Delhi
Publication Year1993
Total Pages636
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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