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८२. श्राद्धे ब्राह्मण परीक्षा वर्णनम, त्याज्ये ब्राह्मण वर्णनम्, होनाधिकाङ्गान् वर्जयेत्
८३. श्राद्धे (पङ्क्तिपावन) प्रशस्त ब्राह्मण वर्णनम् ८४. केषां सन्निधौ श्राद्धं न कर्तव्यम् तद्ववर्णनम् ८५. पुष्करादि तीर्थेषु श्राद्धमहत्त्व वर्णनम् ८६. श्राद्धे वृषोत्सर्ग वर्णनम्
अध्याय ७२ से ८६ तक श्राद्ध का वर्णन है ।
८७. दान फलवर्णने - वैशाखे कृष्णमृगाजिनवान वर्णनम्, कृष्णाजिनाद्यासन विधान विधि वर्णनम् ८८. गोदान महत्व वर्णनं
अध्याय ८७,८८ में दान वर्णन - उध्वंमुखी गाय का दान । ८६. सर्वदेवानाम्मध्येऽग्नेः प्राधान्यत्वं कार्तिके सर्व पाप विमुक्ति वर्णनम्
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इसमें कार्तिक मास में जितेन्द्रिय व्रत करता हुआ जो स्नान करता है वह मनुष्य सब पापों से छूट जाता है ।
६०. मार्गशीर्षादि द्वादशमासान्निर्देशदान महत्त्व वर्णनम् ५२६ मागशीर्ष के चन्द्रमा के उदय में सुवर्ण दान करे उसे रूप और सौभाग्य का लाभ होता है । पौष की पूर्णमा में स्नान औरदान कर कपड़े देवे तो पुष्ट होता है । माघ इत्यादि मासों के पूर्णमासी का व्रत, दान करने से सब पाप नष्ट हो जाते हैं ।
विष्णुस्मृति
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६१. कूप तड़ाग खनन तदुत्सगं विधानं, तल्लक्षणञ्च, तन्निर्देश वस्तु दान महत्त्व वर्णनम्
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कुआं और तालाब के दान करने वाले सब योनियों में तृप्त रहता है । ब्राह्मण के घर या रार ते वृक्ष लगाने से वही फल उसके घर में पुत्र रूप से उत्पन्न होते हैं । जो उनकी छाया में बैठते हैं वे उनके मित्र और सहायक होते हैं । कूपतड़ाग और मन्दिर का जीर्णोद्धार करने वाले को नये बनाने का फल होता है ।
६२. सर्वदानेष्वभय दान महत्त्व वर्णनम् : ५३३
सब दान से बड़ा अभय दान है । इसके साथ गोदान, सुवर्ण, लवण, धान्य, आदि दान का महत्व वर्णन आया है । दान के पात्र - गुरु, ब्राह्मण, दुहिता और जामाता हैं ।
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