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________________ ३० ८२. श्राद्धे ब्राह्मण परीक्षा वर्णनम, त्याज्ये ब्राह्मण वर्णनम्, होनाधिकाङ्गान् वर्जयेत् ८३. श्राद्धे (पङ्क्तिपावन) प्रशस्त ब्राह्मण वर्णनम् ८४. केषां सन्निधौ श्राद्धं न कर्तव्यम् तद्ववर्णनम् ८५. पुष्करादि तीर्थेषु श्राद्धमहत्त्व वर्णनम् ८६. श्राद्धे वृषोत्सर्ग वर्णनम् अध्याय ७२ से ८६ तक श्राद्ध का वर्णन है । ८७. दान फलवर्णने - वैशाखे कृष्णमृगाजिनवान वर्णनम्, कृष्णाजिनाद्यासन विधान विधि वर्णनम् ८८. गोदान महत्व वर्णनं अध्याय ८७,८८ में दान वर्णन - उध्वंमुखी गाय का दान । ८६. सर्वदेवानाम्मध्येऽग्नेः प्राधान्यत्वं कार्तिके सर्व पाप विमुक्ति वर्णनम् ५२६ इसमें कार्तिक मास में जितेन्द्रिय व्रत करता हुआ जो स्नान करता है वह मनुष्य सब पापों से छूट जाता है । ६०. मार्गशीर्षादि द्वादशमासान्निर्देशदान महत्त्व वर्णनम् ५२६ मागशीर्ष के चन्द्रमा के उदय में सुवर्ण दान करे उसे रूप और सौभाग्य का लाभ होता है । पौष की पूर्णमा में स्नान औरदान कर कपड़े देवे तो पुष्ट होता है । माघ इत्यादि मासों के पूर्णमासी का व्रत, दान करने से सब पाप नष्ट हो जाते हैं । विष्णुस्मृति Jain Education International For Private & Personal Use Only ५२३ ५२४ ५२५ ५२५ ५२६ ६१. कूप तड़ाग खनन तदुत्सगं विधानं, तल्लक्षणञ्च, तन्निर्देश वस्तु दान महत्त्व वर्णनम् ५३२ कुआं और तालाब के दान करने वाले सब योनियों में तृप्त रहता है । ब्राह्मण के घर या रार ते वृक्ष लगाने से वही फल उसके घर में पुत्र रूप से उत्पन्न होते हैं । जो उनकी छाया में बैठते हैं वे उनके मित्र और सहायक होते हैं । कूपतड़ाग और मन्दिर का जीर्णोद्धार करने वाले को नये बनाने का फल होता है । ६२. सर्वदानेष्वभय दान महत्त्व वर्णनम् : ५३३ सब दान से बड़ा अभय दान है । इसके साथ गोदान, सुवर्ण, लवण, धान्य, आदि दान का महत्व वर्णन आया है । दान के पात्र - गुरु, ब्राह्मण, दुहिता और जामाता हैं । ५२८ ५२६ www.jainelibrary.org
SR No.002787
Book TitleSmruti Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagsharan Sinh
PublisherNag Prakashan Delhi
Publication Year1993
Total Pages636
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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