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________________ लाश्वाश्वलायन स्मृति ११३ १-१७ १-७ देश की विधि, स्विष्ट कृत, होमादि, उपनयन संस्कार की पूर्ण विधि बताई है ११. महानाम्न्यादिवतत्रयप्रकरण : १७२४ उपनयन संस्कार के अनन्तर एक वर्ष होने पर उत्तरायण में महा नाम्नी व्रत का विधान । द्वितीय वर्ष में महाव्रत, तृतीय वर्ष में उपनिषद् व्रत ये तीन व्रत ब्रह्मचारी को उपनयन संस्कार के अनन्तर तीन वर्ष के भीतर करने चाहिए १२. उपाकर्मप्रकरण : १७२५ उपाकर्म का विधान श्रावण के महीने में हस्त नक्षत्र में करने का निर्देश किया है १३. उत्सर्जनप्रकरण : १७२७ उत्सर्ग-षण्मास (छ मास) में उत्सर्ग कर्म वेद जो पढ़े हैं उनकी पुष्टि के लिए उत्सर्ग कर्म करे १४. गोदानादित्रयप्रकरण : १७२८ गोदान कर्म में जो सोलहवें वर्ष की अवस्था में उपनयन के अनन्तर होता है चोल कर्म की रीति पर हवन कर ब्रह्मचारी को वस्त्रभूषण धारण करने की विधि बताई है १५. विवाहप्रकरण : १७२६ विवाह का विधान (गृहस्थाश्रम) कन्या के विवाह की रीति पद्धति का वर्णन । ब्रह्मचर्याश्रम से गृहस्थाश्रम में प्रवेश करने की विधि । विवाह संस्कार कर बधू को वर अपने घर में लावे उस समय के आचार यज्ञादि का विधान १६. पत्नीकुमारोपवेशनप्रकरण : १७३७ धर्म कार्यों में पत्नी को वाम भाग में, आशीर्वाद के समय दक्षिण भाग में बैठाने का विधान है। पुत्रोत्पत्ति में मौजीबन्धन कर्म तक कर्ता उत्तर में एवं पुत्री पुत्र के दक्षिण में बैठे १७. अधिकारिनियमप्रकरण : १७३७ इस अध्याय में पुत्र के संस्कार करने में किस किस का अधिकार कब कब है इसकी विवेचना की गई है .१-८० १-३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002787
Book TitleSmruti Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagsharan Sinh
PublisherNag Prakashan Delhi
Publication Year1993
Total Pages636
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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