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________________ ११४ १८. नान्दीश्राद्धे पितृप्रकरण : १७३८ बाधान काल, सीमन्त, जातकर्म, नामकरण, निष्क्रमण, अन्नप्राशन, चूडाकर्म, उपनयन, महाव्रत, गोदान, संस्कार समावर्तन और विवाहादि सम्पूर्ण मंगल कार्यों में नान्दी श्राद्ध करने का नियम बताया है लावाश्वलायन स्मृति १६. विवाहहोमेपरिवर्ज्यप्रकरण : १७३६ किसी शुभ कार्य में नान्दी श्राद्ध होने के अनम्बर जब तक मण्डप का विसर्जन न हो तब तक सपिण्डता होने पर भी कोई अशुभ कर्म प्रेत कृत्य मुण्डनादि करने का निषेध बताया है २०. प्रेतकर्मविधि : १७४० पुत्र को पिता आदि का प्रेत कर्म, शव दाह आदि प्रेत कर्म करने का विचार । अशौच का निरूपण दिखाकर अन्त में आत्मनिष्ठ को किसी प्रकार का अशौच नहीं लगता है २१. लोकनिन्दाप्रकरण : १७४ε सदाचार भ्रष्ट क्रियाहीन की निन्दा तथा निन्दित कर्म से उत्पन्न सन्तान असंस्कृत है जिनके यहां यजन करने वाले ब्राह्मणों को निन्दित बताया है २२. वर्णधर्मप्रकरण : १७५१ वर्णधर्म - ब्राह्मण की श्रेष्ठता यदि वह वेदज्ञ हो, वेदों का उपदेश कर्ता हो । ब्राह्मण का अपमान करना एवं उससे सेवा कराने में पाप बताया है २३. श्राद्धप्रकरण : १७५३ श्राद्ध कर्म की विधि एवं उसका माहात्म्य | इसे विधि पूर्वक - करने वाले की सब कामना सफल होकर सायुज्य मुक्ति होती है तथा पितरों की प्रसन्नता से वह सम्पूर्ण कामनाओं को प्राप्त कर ज्ञाननिष्ठ होता है २४. श्राद्धोपयोगी प्रकरण १७६४ श्राद्ध करने का माहात्म्य । जो व्यक्ति क्षयाह में भालस्य या प्रमाद से माता पिता का श्राद्ध विधिवत् नहीं करता है उसके Jain Education International For Private & Personal Use Only १-६ १-६ १-६२ १-१६ १-२४ १-११३ www.jainelibrary.org
SR No.002787
Book TitleSmruti Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagsharan Sinh
PublisherNag Prakashan Delhi
Publication Year1993
Total Pages636
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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