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________________ बौधायन स्मृति पितर उस सन्तान से जैसे निराश होते हैं वैसे ही वह सन्तान भी अधोगति को प्राप्त होती है । जो माता पिता का विधिवत् अर्थात् श्राद्ध करने की विधि बताई है जैसे योग्य ब्राह्मण श्राद्ध में निमन्त्रित किए जाते हैं उस पूर्ण विधि से जो श्राद्ध करता है उसके पितर तृप्त होते हैं । वह पुरुष आत्मनिष्ठ होकर स्वयं इस संसार से तर जाता है एवं दूसरों को भी तार देता है बौधायन स्मृति १. सशिष्ट धर्म वर्णन बौधायन स्मृति में धर्म की प्रधानता अर्थ की गौणता प्राचीन वैदिकाचार का वर्णन है । इसमें मुख्य तीन प्रश्नों का निर्णय है । प्रथम प्रश्न " उपदिष्टो धर्मः प्रति वेदम्" "तस्यानुव्याक्यास्यामः" "स्मार्तो द्वितीयः" "तृतीयः शिष्टागमः" । "उपदिष्टो धर्मः प्रतिवेदम्” इसकी व्याख्या १२ अध्यायों में क्रमश: वर्णन की गई है । "शिष्टायम" की परिभाषा स्वयं बौधायन ने की है । "विगतमत्सरनिरहंकार कुम्भीधान्या अलोलुपदम्भदर्प लोभमोहक्रोधविवर्जिताः" धर्म का ज्ञान वेदों से होता है । वेद के अभाव में स्मृति ग्रन्थों से शिष्ट पुरुषों द्वारा परिषद् का निर्णय । परिषद् का निर्णय इस प्रकार बताया है चातुर्ये बिकल्पी च अङ्गविद् धर्मपाठकः । आश्रमस्यास्त्रयो विप्राः पर्षदेवा दशावरा ॥ वस्मृत्यादिज्ञान से रहित परिषद् को प्रमाणित नहीं बताया है । यथा- यथा वाममोहस्ती यथा चर्ममयोमृगः । ब्राह्मणश्चानधीयानस्त्रयस्ते नामधारकाः ।। Jain Education International - For Private & Personal Use Only ११५ १-३१ www.jainelibrary.org
SR No.002787
Book TitleSmruti Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagsharan Sinh
PublisherNag Prakashan Delhi
Publication Year1993
Total Pages636
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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