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लाध्वाश्वला
२. स्थालीपाकप्रकरणम् : १७०३ इस सम्पूर्ण अध्याय में स्थालीपाक यज्ञ का सांगोपांग विधान है।
जो सामयिक गृहस्थी होते हैं उनको स्थालीपाक यज्ञ के पूर्व दिन पूर्णमासी को प्रायश्चित्त कर संकल्प करना चाहिए कि मैं कल स्थालीपाक यज्ञ करूंगा। अन्वाधान कर स्थालीपाक यज्ञ की एक हाथ चौरस वेदी बनाकर गोबर से लेपन कर रेखोल्लेखन, प्रोक्षण कम, अग्निस्थापन, अग्निपूजन, ध्यान, परिस्तरण, प्रोक्षणी पात्र, उक् चमस, आज्य पात्र, स्रक स्र व स्थापन, समिधाहरण आदि सम्पूर्ण विधि लिखी है। १-८०
३. गर्भाधानप्रकरणम् : १७०८ गर्भाधान की विधि का वर्णन किया है
१-१६ ४. पंसवनानवलोभनसीमन्तोन्नयनप्रकरण : १७१० पुंसवन सीमन्त कर्म की विधि तथा समय का वर्णन है
१-१६ ५. जातकर्मप्रकरण : १७१२ जातकर्मसंस्कार की विधि
६. नामकरणप्रकरण १७१३ नामकरण की विधि और नाम किस अक्षर से किस बालक का
करना इसका निर्णय लिखा है। कुमार के कान में मन्त्र जप कर पिता उसके नाम को कहे
७. निष्क्रमणप्रकरण : १७१४ चतुर्थ मास में निष्क्रमण कर्म लिखा है
८. अन्नप्राशनप्रकरण : १७१५ छठे महीने में अन्नप्राशन की ब्यवस्था बताई है
६. चौल (चूड़ाकरण) कर्मप्रकरण १७१५ चूडाकर्म संस्कार तृतीय वर्ष में करने का विधान । चूडाकर्म से विवाह पर्यन्त लौकिकाग्नि में हवन करने का विधान बताया है
१-२२ १०. उपनयनप्रकरण : १७१८ उपनयन संस्कार की विधि । ब्राह्मण कुमार का अष्टम वर्ष में । उपनयन संस्कार, मौजी कर्म, मेखला धारण, गायत्री उप
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