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________________ लाघ्वाश्वलायन स्मृति लाघ्वाश्वलायन स्मृति १. आचारप्रकरणवर्णनम् १६८३ आश्वलायन गृह्यसूत्र के निर्माता भी हैं । इस स्मृति में शंख, औशनस, व्यास और प्राजापत्यादि स्मृतियों की रीति पर व्यवहार प्रकरण का स्थान नहीं है केवल धार्मिक और सांस्कृतिक आचार का ही विस्तृत वर्णन है । इससे इन स्मृतियों की प्राचीनता का अनुमान होता है । यथा"धर्मेकताना पुरुषा यदासन् सत्यवादिनः " जब जनता धर्म परायण रही उस समय सब सत्यवादी होते थे । इस कारण व्यवहार अर्थात् दण्डदापन राजशासन विधि की आवश्यकता न होने से व्यवहार प्रकरण का विस्तार नहीं रखा गया है । इस अध्याय में मुनियों ने आश्वलायन आचार्य से द्विजातियों के धर्म कहकर मनुष्यों के सांस्कृतिक जीवन के आचार पर प्रश्न किया, साथ ही यह बताया कि इस प्रकार के आचरण करनेवाले मनुष्य स्वर्गगामी होते है । द्विज शब्द यहां पर मनुष्य शब्द का वाचक 1 प्रातःकाल ब्राह्ममुहूर्त में उठना, शौचाचार एवं स्नान के मन्त्रों का वर्णन किया है ( १-३६) सूर्यार्ध्य, सायं प्रातः और मध्याह्न संध्या तथा सूर्योपस्थान की विधि अग्निहोत्र की विधि तथा स्त्री के साथ ही अग्निहोत्र कर्म हो सकता है वेदाध्ययन की विधि र्पण विधि द्ध कर्म, बलि वैश्वदेव, हन्तकार एवं श्राद्धकाल का वर्णन ञ्च महायज्ञ, मधुपर्कं विधान, वैश्वदेव तथा काशी में शरीर त्याग से मुक्ति का होना बताया है Jain Education International For Private & Personal Use Only १११ ४०-६८ ६६-७२ ७३-६० ६१-११३ ११४-१४२ १४३-१८६ www.jainelibrary.org
SR No.002787
Book TitleSmruti Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagsharan Sinh
PublisherNag Prakashan Delhi
Publication Year1993
Total Pages636
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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