________________
११०
देवल स्मृति .
देवल स्मृति
प्रायश्चित्तवर्णनम् १६५५ समुद्र तट पर ध्यानावस्थित देवल से ऋषियों ने पूछा कि
महाराज ! म्लेच्छों के साथ जिनका सम्पर्क हो गया है अर्थात् जो पुरुष बलात् या स्वेच्छा से धर्म परिवर्तन कर चुका है उसको क्या करना चाहिये जिससे वह पुनः अपनी जाति में पावन हो जाय । इसके उत्तर में ऋषि देवल ने उन सबका प्रायश्चित्त विभिन्न प्रकार से बताया प्रारम्भ में अपेय पान अभक्ष्य भक्षण से सब प्रकार के सांसर्गादि पातित्य कर्मों में पृथक्-पृथक् प्रायश्चित्त कर सबकी शुद्धि बताई है । प्रायश्चित्तों के करने पर अन्त में गङ्गा स्नान से शुद्धि बताई है । इस स्मृति में जाति शुद्धि, देह शुद्धि और समाज शुद्धि पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है
प्रजापति स्मृति इस स्मृति में एक ही श्राद्ध कर्म का पूर्णाङ्ग पूर्ण विधि से वर्णन
किया गया है । शुक्राचार्य के कथन से श्राद्धकल्प में उथल पुथल हो गई थी । श्राद्ध कर्म के न करने से द्विजाति बलहीन
और राक्षस बल हरण करने वाले हो गये थे । अतः श्राद्ध कल्प पर प्रजापति श्राद्ध के सम्बन्ध में श्राद्ध के भेद, श्राद्ध विधि, श्राद्ध के मन्त्र सम्पूर्ण कहे हैं । इस स्मृति के अध्ययन से श्राद्ध कर्म की आवश्यकता तथा सम्पूर्ण विधि मालूम हो जायगी। श्राद्ध के नियम, श्राद्ध काल, आभ्युदयिक श्राद्ध का माहात्म्य, श्राद्ध की सामग्री, श्राद्ध में पुण्य पाठ, श्राद्ध करने से पितरों की तृप्ति एवं श्राद्धकर्ता दीर्घायु, पुत्रवान्, धनवान, ऐश्वर्यवान् होता है ।
१-१६८
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org