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________________ कण्व स्मृति कण्वस्मृति धर्मसार धर्मकर्तव्य नित्यनैमित्तिककर्म : २८६० युगभेद से ब्रह्मवेत्ता आदि ऋषियों ने कण्व ऋषि से सनातन धर्मों के विषय में पूछा धर्मकत्तंग्यवर्णन - जिस व्यक्ति की बुद्धि ऐसी है कि क्रिया, कर्त्ता, कारयिता, कारण और उसका फल सब कुछ हरि है वही स्थिर बुद्धि का है, उसका जीवन सफल है परमेश्वरप्रीत्यर्थं किया हुआ कर्म ही सफल है । सत्सङ्कल्प एवं उसका फल नित्यनैमित्तिक कर्मों का फल निर्णय नित्यकृत्य का वर्णन प्रातः काल में स्मरण करने योग्य कीर्त्य महानुभावों का वर्णन प्रातः शौचस्नानादि क्रियाओं का वर्णन गण्डूष के समय शब्द का निषेध और उसका प्रायश्चित का वर्णन भक्षण एवं खाने के समय भी शब्द करने का निषेध मूत्रपुरीषोत्सर्ग में गण्डूष के बाद आचमन का विधान गृहस्थों का मृत्तिका शौच का विधान शुभकर्मों में सर्वत्र आचमन का विधान नित्यकर्मों में उलट-फेर करने से फल नहीं होता है स्नान के समय आवश्यक कृत्य जैसे सन्ध्या, अर्घ्य, गायत्री मन्त्र वायव्य स्नान का अन्य स्नानों से श्रेष्ठत्व वर्णन सन्ध्याओं का विधान साथ ही गायत्री जप का माहात्म्य सन्ध्या ही सबका मूल है Jain Education International १६३ का जप देवर्षिपितृतर्पण, स्नानाङ्गतर्पण अवश्य करने चाहिए १५१-१५८ कण्ठस्नान, कटिस्नान, पादस्नान, कापिल स्नान, प्रोक्षणस्नान स्नात स्नान एवं शुद्ध वस्त्र धारण करने का विधान, जैसा शरीर माने वैसा करे For Private & Personal Use Only १-५ ६-१० ११-६१ ४-५० ५१-७४ ७५-८० ८१-६४ ६५-६७ ६८-१०४ १०५-११६ ११७-१२६ १२७-१४० १४१-१५० १५६-१६६ १६१-१६७ १६८-१७० १७१-१६८ १६६ - २०६ www.jainelibrary.org
SR No.002787
Book TitleSmruti Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagsharan Sinh
PublisherNag Prakashan Delhi
Publication Year1993
Total Pages636
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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