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याज्ञवल्क्य स्मृति श्राद्धप्रकरणवर्णनम् : १२५५ पुण्यकाल का वर्णन, जैसे --अमावस्या व्यतिपात तथा चन्द्र सूर्य
ग्रहण, इनमें श्राद्ध करने का माहात्म्य तथा कौन ब्राह्मण श्राद्ध
में पूजा योग्य हैं और कौन निन्दित हैं इसका विवरण २१५-२२७ श्राद्ध की विधि तथा श्राद्ध की सामग्री श्राद्ध के पहले दिन ब्राह्मणों
को निमंत्रण देना, किन-किन मन्त्रों से पितरों का पूजन तथा किन मन्त्रों से वैश्वदेव का पूजन करना
२२८-२५० एकोदिष्ट श्राद्ध, तीर्थ श्राद्ध और काम्य श्राद्ध का विधान २५१-२७०
विनायकादिकल्पप्रकरणवर्णनम् : १२६० गणनायक की शान्ति और जिस पर उनका दोष हो उसके लक्षण ।
गणनायक के रुष्ट होने पर मनुष्य विक्षिप्त हो जाता है। यदि कन्या पर रुष्ट होता है तो उसका विवाह नहीं होता और यदि होता है तो सन्तान नहीं होती है
२७१-२७६ विनायक की शान्ति तथा अभिषेक और हवन एवं शान्ति के अव__ सान में गौरी का पूजन
२७७-२६२ ग्रहशान्तिप्रकरणवर्णनम् : १२६२ नवग्रह की शान्ति, ग्रहों के मन्त्र, उनका दान और जप
ग्रहाधीना नरेन्द्राणामुच्छ्याः पतनानि च ।
भवभावौ च जगतस्तस्मात् पूज्यतमाः स्मताः ।। अर्थात् राजाओं की उन्नति तथा अवनति, संसार की भावना और
अभावना सब ग्रहचक्रों पर निर्भर रहता है । अत: ग्रह शान्ति करनी चाहिए ग्रह किस धातु का बनाना चाहिए यह भी बताया गया है
२६३-३०८ राजधर्म प्रकरण वर्णनम : १२६३ शासक राजा के लक्षण और उसकी योग्यता
३०६-३११ राजा के कैसे मंत्री और पुरोहितों, ज्योतिषियों को रखना, उनके
लक्षण । दुर्ग रचना किस प्रकार करनी चाहिए । अन्त में प्रजा
को अभय देना यह राजा का परम धर्म बतलाया गया है ३०६-३२३ राजा की दिनचर्या का वर्णन
अन्यायेन नपो राष्ट्रात स्वकोशं योऽभिवद्धयेत् । सोऽचिराद्विगतश्रीको नाशमति सबान्धवः ।।
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