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________________ याज्ञवल्क्य स्मृति अर्थात् जो राजा अन्याय से राष्ट्र का रुपया अपने खजाने में जमा करता है वह राजा बहुत जल्दी सपरिवार नष्ट हो जाता है । ३२४-३४३ साम, दाम, दण्ड, भेद कहां पर प्रयोग करने चाहिये उनका वर्णन । दूसरे के राष्ट्र में कब घुसना उसकी परिस्थिति का वर्णन ३४४-३४८. राजधर्म में यह बताया है कि पुरुषार्थ और भाग्य दोनों को तराजू में तौलकर रखे एक से काम नहीं चलता ३४९-३५१ राजा को मित्र बनाना सबसे बड़ा लाभ है ३५२-३५३ दण्ड का विधान-वाग् दण्ड, धन दण्ड, वधदण्ड और धिकदण्ड ये चार प्रकार के दण्ड हैं। अपराध देशकाल को देखकर इन दण्डों की व्यवस्था करे ३५४-३६८ २. व्यवहाराध्यायः सामान्यन्याय प्रकरणम् “१२६६ राजा को व्यवहार देखने की योग्यता और अपने साथ सभासदों का नियोग तथा उनकी योग्यता । व्यवहार की परिभाषा स्मत्याचार व्यपेतेन मार्गेणाषितः परैः । आवेदयति चेद्राज्ञ व्यवहारपदं हि तत् ।। अर्थात् आचार और नियम विरुद्ध जो किसी को तंग करे उस पर राजा के पास जो आवेदन किया जाता है उसको व्यवहार कहते हैं व्यवहार के चार वाद हैं । जैसे-आवेदन (दरखास्त), प्रत्यर्थी के सामने लेख, सम्पूर्ण कार्य का वर्णन, प्रत्यर्थी के उत्तर, इकरार लिखना (झूठा होने पर दण्ड होगा) जिस पर एक अभियोग हुआ है उसका फैसला नहीं होने तक दूसरा अभियोग नहीं लगाया जाता है। चोरी मारपीट का अभियोग उसी समय लगाया जाता है। दोनों से जमानत लेनी चाहिए । झूठे मुकदमे में दुगुना दण्ड लगाना चाहिए ६-१२ झूठे बनावटी गवाह की पहचान १३-१५ दोनों पक्ष के साक्षी होने पर पहले वादी के साक्षी लेने चाहिये। जब वादी का पक्ष गिर जाय तब प्रतिवादी अपने पक्ष को साक्षी से पुष्ट करे इत्यादि । यदि झठा मुकदमा हो तो उसे १-४ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002787
Book TitleSmruti Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagsharan Sinh
PublisherNag Prakashan Delhi
Publication Year1993
Total Pages636
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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