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________________ ८४ प्रत्यक्ष प्रमाणों से शुद्ध कर लेवे। जहां दो स्मृतियों में विरोध हो वहां व्यवहार से निर्णय करना । अर्थशास्त्र और धर्मशास्त्र के मिलने में विरोध आ जाय वहां धर्मशास्त्र को ऊंचा स्थान देना चाहिए प्रमाण तीन प्रकार के होते हैं- लेख (लिखित), भोग ( कब्जा ), साक्षी ( गवाह ), इन तीन प्रमाणों के न होने पर दिव्य ( ईश्वर को पुकार कर ) शपथ करते हैं। बीस वर्ष तक भूमि किसी के पास रह जाय या दस वर्ष तक धन किसी के पास रह जाय और उसका मालिक कुछ न कहे तो व्यवहार का समय चला जाता है, किन्तु यह नियम धरोहर, सीमा, जड़ और बालक के धन पर लागू नहीं होगा आगम (भुक्ति) भोग ( कब्जा ) के सम्बन्ध में निर्णय राजा इनके निर्णय के लिए एक सभा बनावे और बल से एवं किसी उपाधि से जो व्यवहार किया गया है उसको वापस कर देवे निधि (गड़ा हुआ धन ) का निर्णय ऋणादान प्रकरणम् १५६ ऋण (कर्जा) की वृद्धि का दर और किसको किसका और नहीं देना इसका निर्णय —स्त्री केवल पति के ऋण किया है उसको देगी और बाकी को नहीं । तक हो सकता है, पशु की संतति तथा दान दि का वर्णन है । जब चुकाने पर धनी न वृद्धि नहीं होगी निक्षेप ( धरोहर ) वर्णन याज्ञवल्क्य स्मृति उपनिधि प्रकरण वर्णनम : १२७५ Jain Education International देना जो युव परकीय रा साक्षोप्रकरणविधिवर्णनम् : १२७६ साक्षी का प्रकरण - साक्षी कौन होना चाहिए और साक्षी के लक्षण, कूट ( जाली ) साक्षियों का वर्णन For Private & Personal Use Only लिखित प्रकरणम् : १२७८ लेख में गवाह होना चाहिए तथा सम्वत्, महीना और दिन भी होना चाहिए, लेख की समाप्ति में ऋण लेने वाला अपना १६-२० २१-२२ २३-२५ २६-३० ३१-३२ ३३-३७ ३८-६५ ६६-६८ ६६-८५ www.jainelibrary.org
SR No.002787
Book TitleSmruti Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagsharan Sinh
PublisherNag Prakashan Delhi
Publication Year1993
Total Pages636
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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