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सोने को बेचने वाले तथा मांस के बेचने वाले को अङ्ग हीन करना चाहिए जो स्त्री अपने जार को चोर कहकर भगा देवे उसे पांच सौ पल दण्ड देना चाहिए । राजा के अनिष्ट कहने वाले को या राजा के भेद को खोलने वाले की जिह्वा काट लेनी चाहिए
याज्ञवल्क्य स्मृति
३. आशौचप्रकरणवर्णनम् : १३०३
दो वर्ष से कम उम्र के बच्चे को भूमि में गाड़ देना चाहिए । बच्चे के मरने पर सातवें या दसवें दिन दूध देना चाहिए किसी के मरने पर यदि उसी दिन घर में दूसरे का जन्म हो जाए तो पहले के सूतक से वह शुद्ध हो जाएगा । राजाओं को और यज्ञ में बैठे हुए ऋषियों को सूतक नहीं लगता है । आपद्धर्मप्रकरणवर्णनम् : १३०७
आपत्ति में ब्राह्मण, क्षत्रिय और वैश्य कर्म से निर्वाह कर सकता है । परन्तु मांस तिल आदि आपत्ति में भी न बेचे । लाक्षालवणमांसानि पतनीयानि विक्रये ।
पयोदधि च मद्यञ्च हीनवर्णकराणि च ॥
अर्थात् लाख, लवण और मांस बेचने से पतित हो जाता है । कृषि, शिल्प, नौकरी, चक्रवृद्धि, इक्का हांकना और भीख मांगना इनसे आपत्ति काल में जीवन निर्वाह कर सकता है
वानप्रस्थधर्मप्रकरणवर्णनम् : १३०८
वानप्रस्थ स्त्री को अपने साथ ले जाए या अपनी सन्तान के पास छोड़ दे । वानप्रस्थ इन्द्रियों को दमन करने वाला, प्रतिग्रह न लेने वाला, स्वाध्याय करने वाला होना चाहिए । चान्द्रायण आदि से समय व्यतीत करे, वर्षा में ठण्डी जगह रहे, हेमन्त में गीले कपड़ों से रहे अर्थात् जितनी शक्ति हो उसी हिसाब से वन में तपस्या करता रहे
यतिधर्मप्रकरणवर्णनम् १३०६
यति सम्पूर्ण प्राणीमात्र का हित करनेवाला, शान्त और दण्ड धारण करनेवाला हो । यति के सब पात्र बांस और मिट्टी के होते हैं इनकी शुद्धि जल से हो जाती है । यति को राग
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