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पाराशरस्मृति
"ब्रह्मकूर्बो वहेत्सवं यथैवाग्निरिवेन्धनम् "
पीते-पीते पानी यदि पात्र में रह जाय तो फिर पीने का दोष तालाब, कुएं में जहां जहां जानवर मर गया हो उस जल के पीने
में प्रायश्चित्त
पंच यज्ञ का विधान ।
१२ शुद्धिवर्णनम् ६७५
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पुनः संस्कारावि प्रायश्चित्त वर्णनम् ।
खराब स्वप्न देखने पर स्नान से शुद्धि
अज्ञानवश सुरापान
तीनों वर्णों का प्रायश्चित्त, स्नान का विधान, अजिन (मृगचर्म ), मेखला छोड़ने पर ब्रह्मचारी के पुनः संस्कार
आग्नेय, वारुणेय, सातपवर्ष (दिव्य ) और भस्म स्नानादि
आचमन करने का समय और विधान
सूर्य-स्नान
चन्द्रग्रहण पर दान माहात्म्य
रात्रि के मध्य के दो प्रहर को महानिशा कहते हैं । रात्रि के उत्तराधे के दो प्रहर को प्रदोष कहते हैं । उसमें दिनवत् स्नान करना चाहिए
ग्रहण के स्नान का विधान
जो यज्ञ न कर सकते हों उनको वेदाध्ययन की आवश्यकता है। शूद्रान्न का भक्षण
अन्याय के धन से जीवन-यापन
गोचर्म भूमि की संज्ञा तथा उस के दान का माहात्म्य
छोटे-छोटे पाप जैसे - मुंह लगाकर जल पीने से पाप
गृहस्थी व्यर्थं (ऋतु कालाभिगमन के अतिरिक्त) वीर्य नष्ट करे उसका प्रायश्चित्त
प्रायश्चित्त वर्णनम् : ६८० छोटे-छोटे प्रायश्चित्त - ऐसी-ऐसी शुद्धियों का वर्णन तथा इनसे पाप दूर करने का विधान
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