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________________ वृहद पाराशर स्मृति इसमें १२ अध्याय हैं । प्रथम अध्याय में पराशर संहिता के क्रमानुसार ही विभिन्न अध्यायों में वर्णित आचार प्रायश्चित्त आदि विषयों का वर्णन किया गया है । १. वर्णाश्रमधर्मं वर्णनम् : ६८२ वर्णाश्रम धर्म कलियुग में किस प्रकार से होता है, इस प्रश्न को लेकर व्यास आदि ऋषियों का पराशरजी के पास जाना पराशरजी ने कहा कि वेद और धर्मशास्त्र इन दोनों का कर्ता कोई नहीं है । ब्रह्माजी को जिस प्रकार वेदों का स्मरण हुआ था उसी प्रकार युग-प्रति-युग में मनुजी को धर्मस्मृतियों का स्मरण हुआ । पराशरजी ने कलियुग की विप्लव दशा में खेद प्रगट किया कि धर्म दम्भ के लिए, तपस्या पाखण्ड के लिए एवं बड़े-बड़े प्रवचन लोगों की प्रवंचना ( ठगी) के लिए किए जाते हैं। गायों का दूध कम हो जाता है, कृषि में उर्वरा शक्ति कम हो जाती है, स्त्रियों के साथ केवलमात्र रति की कामना से सहवास करते हैं न कि पुत्रोत्पत्ति के लिए । पुरुष स्त्रियों के वशीभूत होते हैं । राजाओं को वंचक अपने वश में कर लेते हैं । धर्म का स्थान पाप ले लेता है । शूद्र ब्राह्मणों का तथा ब्राह्मण शूद्रवत् आचरण करने लगते हैं । धनी लोग अन्याय मार्ग पर चलते हैं । इस प्रकार कलियुग की विषमता पर अत्यन्त खेद प्रगट किया है Jain Education International १-२० धर्मविषयवर्णनम् : ७८६ इसमें आचार वर्णन दिखया और युगों का नाम बताया है। सतयुग को ब्राह्मण युग, त्रेता को क्षत्रिय युग, द्वापर को वैश्य युग तथा कलियुग को शूद्र युग बताया है । वर्णाश्रम धर्म की क्षमता उस भूमि में बताई है जिसमें For Private & Personal Use Only २१-३५ www.jainelibrary.org
SR No.002787
Book TitleSmruti Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagsharan Sinh
PublisherNag Prakashan Delhi
Publication Year1993
Total Pages636
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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