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________________ विष्णुस्मृति व्रत करे । अभक्ष्य भक्षण करने से जो पाप होते हैं वे सभी इस व्रत से नष्ट हो जाते हैं । ५२. स्वर्णस्तेयिनां तथान्यान्य द्रव्य हतॄणां प्रायश्चित्त वर्णनम् : ४८७ सुवर्णचोरी तथा अन्यान्य द्रव्यचोरी के प्रायश्चित्त का वर्णन है । ५३. अगम्यागमने दोषनिरूपणं प्रायश्चित्त वर्णनम् : ४८८ अगम्यागम्य के विषय में प्रायश्चित्त ५४. यः पापात्मा येन सह युज्यते तत्प्रायश्चित्त वर्णनम् : ४८६ जो जिस पापी के साथ रहता है उसे भी वही प्रायश्चित्त बतलाया है। ५५. रहस्य प्रायश्चित्त विधान वर्णनम् : ४६२ रहस्य पापों का प्रायश्चित, प्रणव का जप, हविष्यांग और प्राणायामादि बतलाया है । ५६. वेदोद्धृतपवित्र मन्त्र वर्णनम् : ४६० इसमें जप, होम, अघमर्षण, नारायणी सुक्त और पुरुषसूक्त इत्यादि का माहात्म्य बतलाया गया है । ५७. अभोज्यप्रतिग्राह्ययोस्त्याज्य वर्णनम् : ४६४ इसमें त्याज्य मनुष्यों का निर्देश, त्याज्य पुरुषों से दान लेने से ब्राह्मणों का तेज नष्ट हो जाता है । ५८. गृहस्थाश्रमिणस्त्रिविधोऽर्थोपार्जन वर्ण नम् : ४६५ २८ इसमें गृहस्थी के तीन प्रकार के अर्थ बतलाये हैं । शुल्क सबल और असित, जो अपनी वृत्ति से धनोपार्जन करते हैं उन्हें शुल्क, दूसरों को ठगकर अपना व्यापार करते हैं उन्हें सबल, तीसरे रिश्वत और सट्टामादि से रोजगार करने वाले और ब्याज खाने वाले को असित कहते हैं। जिस तरह जो रुपया आता है उसकी गति वैसी ही होती है । ५६. गृहस्थाश्रमिणां कर्तव्यमग्निहोत्रश्च वर्णनम् : ४६६ गृहस्थाश्रमी नित्य हवन करे इस तरह लिखे हुए आचार के अनुसार हवन करने वाले की प्रशंसा की गई है । ६०. सर्वेषां नित्यशौच ब्राह्ममुहूर्तादि कृत्यवर्णनम् : ४६८ ६१. दन्तधावन प्रकरण वर्णनम् : ४६६ ६२. द्विजातीनां प्राजापत्यादि तीर्थ वर्णनम् Jain Education International For Private & Personal Use Only ५०० www.jainelibrary.org
SR No.002787
Book TitleSmruti Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagsharan Sinh
PublisherNag Prakashan Delhi
Publication Year1993
Total Pages636
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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