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याज्ञवल्क्य स्मृति न्याय से आये हुए धन से जीवन बितानेवाला, तत्त्व ज्ञान में
जिसकी निष्ठा हो, अतिथि सत्कार तथा श्राद्ध करनेवाला, सत्यवादी गृहस्थी भी इस जन्ममरण से छूट जाता है
६७-२०५ प्रायश्चितप्रकरणवर्णनम् १३२३ पापी महापापी कर्म के अनुसार नरक भोगने के अनन्तर जब
मनुष्य योनि में आते हैं तब ब्रह्महत्यारा जन्म से ही क्षय रोगी होता है। परस्त्री को हरने वाला, ब्राह्मण के धन को हरने वाला ब्रह्मराक्षस होता है। जो पाप को समझने पर भी प्रायश्चित्त नहीं करते है वे रौरव नरक में जाते हैं। इस प्रकार महानरकों का वर्णन आया है। महापापी चार हैंब्रह्म हत्यारा, सोने को चुराने वाला, गुरु की स्त्री से गमन करने वाला और मद्य पीनेवाला तथा जो इनके साथ रहता है वह भी महापातकी होता है । इसके बाद आगे के श्लोकों में उपपातकों की गणना की है । महापातकी को आमरणान्त प्रायश्चित्त बतलाया है अन्य पापों की शुद्धि के लिये चान्द्रायण आदि व्रत बतलाये हैं। गर्भपात और भर्तृ हिंसा स्त्री के लिए महापाप है। शरणागत को मारने वाले, बच्चों को मारनेवाले, स्त्री के हिंसक और कृतघ्न की कभी शुद्धि नहीं होती है । सान्तपन कृच्छ्र, पर्णकृच्छ, पादकृच्छ, तप्तकृच्छ्र, अतिकृच्छ्र, कृच्छ्रातिकृच्छ्र, तुला पुरुष, चान्द्रायण व्रत और कृच्छचान्द्रायणादि व्रत बतलाये गये हैं । ऋषिणों ने याज्ञवल्क्य से धर्मों को सुनकर यह कहा कि जो इसको धारण करेगा वह इस लोक में यश को प्राप्त कर अन्त में स्वर्गलोक को प्राप्त होगा। जो जिस कामना से धारण करेगा उसकी कामनायें पूर्ण सफल होंगी। ब्राह्मण इसको जानने से सत्पात्र, क्षत्रिय विजयी, वैश्य धनधान्य सम्पन्न, विद्यार्थी विद्यावान् होता है । इसको जानने और मनन करने से अश्वमेध यश के फल को प्राप्त होता है
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