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ते यान्तिनरशार्दूल ब्रह्मलोकमसंशयम् । सावित्रीमात्रसारोऽपि वरोविप्रः सुयन्त्रितः ॥ २६ ॥
नायन्त्रितश्चतुर्वेदी सर्वाशीसर्वविक्रयी ।
विप्र प्रशंसा
विप्रप्रसादाद्धरणीधरोऽहं विप्रप्रसादादसुराञ्जयामि ।
विप्रप्रसादाच्च सदक्षिणोऽहं
विप्रप्रसादादजितोऽहमस्मि ॥ ५७ ॥
वृद्धगौतम स्मृति
५. जीवस्य शुभाशुभकर्मवर्णनम् : १६४६
युधिष्ठिर का प्रश्न - मनुष्य लोक और यमलोक का क्या प्रमाण है ? और मनुष्य किस प्रकार यमलोक से तर जाते हैं ? प्रेतलोक और यमलोक की गति किस प्रकार है ? यमलोक आदि का वर्णन और जीव की गति तथा कौन यमलोक और स्वर्गलोक को जाते हैं । सब प्राणी यमलोक में किस प्रकार दुःख भोगते हुए जाते हैं युधिष्ठिर का प्रश्न -
- किस दान के करने से जीव यमलोक के मार्ग से छुटकारा पाकर सुख प्राप्त करते हैं
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अनेक प्रकार के दान और वृक्षादि लगाने और जिन श्रेष्ठ कर्मों से मनुष्य स्वर्ग को जाता है उनका विस्तार पूर्वक वर्णन |
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६. सर्वदानफलवर्णनम् : १६५८
सम्पूर्ण प्रकार के दानों का फल और कैसे ब्राह्मण को दान देना चाहिए । दानपात्र ब्राह्मण के लक्षण तथा तपस्या का फल
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ऐसे ब्राह्मणों के लक्षण जिन्हें दान देने से मनुष्य दुःखों से छूट जात है । यथा
ये क्षान्तदान्ताश्च तथाभिपूण जितेन्द्रियाः प्राणिवधेनिवृत्ताः । प्रतिग्रहे सङ्क चिता गृहस्थास्ते ब्राह्मणस्तारयितुं समर्थाः ॥
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