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________________ १२७ खगौतम स्मृति सत्पात्र और पूज्य ब्राह्मण के शुभलक्षण ब्राह्मणो यस्तु मभक्तौ मद्याजीमत्परायणः । मयि सन्न्यस्त कर्मा च स विप्रस्तारयिष्यति ।। ७. वृषदानमहत्त्ववर्णनम् : १९७५ वैशम्पायन से पूछा कि दान धर्म को सुनने पर मुझे जिज्ञासा हुई है कि आप और-और धर्मों को भी बतलाइये दश गो के दान के समान एक बैल का दान पुष्ट बैल का दान हजार गोदान के समान कहा गया है। बराबेन समोऽनवानेकोऽपि कुरुपुंगव । मेरोमांस विपुष्टांगो नोरोगः पापजितः।। इसके दान करने से ब्राह्मण खेत को जोत सकते हैं और ज्ञानपूर्वक अन्नोत्पादन कर सुन्दर स्वथ्य दीर्घजीवी सन्तान उत्पन्न कर सृष्टि की उत्तरोत्तर उन्नति करते हैं। अनेक प्रकार के दान जैसे मन्दिरों में भजन कीर्तन, प्याऊ लगाना, वृक्षारोपणवर्णन ५-१३३ ८. पच्चमहायज्ञवर्णनम् : १९८७ पुधिष्ठिर के प्रश्न पञ्चयज्ञ विधान पर .. १-७ पञ्चमहायज्ञ करने की आवश्यकता ८-१८ धिष्ठिर का स्नानविधि पर प्रश्न १६ नान करने की विधि और स्नान के साथ क्या-क्या करना चाहिए । सन्ध्या देवर्षि पितृतर्पण करके ही जल से निकलना चाहिए। बिना तर्पण किए वस्त्र निष्पीड़न करने से देवता, ऋषि और पितर शाप देते हुए निराश होकर लौट जाते हैं। २०-७२ अतपयित्वा तान्पूर्ण स्नानवस्त्रन्नपीडयेत् । पीडयेदितन्मोहाद्देवाः सषिगणास्तथा ॥ पितरश्च निराशास्तं शप्त्वा यान्तियपागमम् ।। भिन्न प्रकार के पुष्पों द्वारा पूजा करने के माहात्म्य पर प्रश्न ? ७३ हाने योग्य पुष्पों का वर्णन और वजित पुष्पों का निषेध ७४-८३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002787
Book TitleSmruti Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagsharan Sinh
PublisherNag Prakashan Delhi
Publication Year1993
Total Pages636
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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