________________
११५
प्रायश्चित्तप्रकरण : १८००
(स्मार्तो धर्मः) इसके निर्णय में प्रथम अध्याय में प्रायश्चित्त विधान बताया है । भ्रूण हत्या करने वाले को १२ वर्ष तक प्रायश्चित्त इसी प्रकार ब्रह्म हत्या करने वाले को भी द्वादश वर्ष का प्रायश्वित्त और मातृगामी को तप्त लोह में लेटाना तथा लिङ्गच्छेद प्रायश्चित्त इत्यादि पञ्च महापातकियों का पृथक्-पृथक् प्रायश्चित्त । ब्रह्मचारी स्त्री प्रसंग करे उसे अवकीर्णी कहकर उससे गर्दभ यज्ञ करावे इस प्रकार महापातकियों के प्रायश्चित्त का निरूपण किया गया है
बौधायन स्मृति
वायविभागवर्णनम्
दाय विभाग, स्त्रियों की शक्ति को किसी प्रकार क्षीण न होने देना इसके लिए पति, पुत्र एवं पिता का उत्तरदायित्व, अगम्या जो स्त्री जिस पुरुष को है उसका निरूपण । स्नातक के व्रत तथा आचार, पूज्यजनों से कैसा व्यवहार करना चाहिए सन्ध्योपासनाविधि : १८१७
सन्ध्या कर्म की विधि और कर्तव्यता
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
१-६६
१-६६
मध्याह्नस्नानविधि तथा ब्रह्मयज्ञाङ्गतर्पण : १८२० मध्याह्न क्रम से प्रारम्भ कर ब्रह्मयज्ञाङ्ग, अग्नि, प्रजापति, साम, रुद्राणि, दैवत तर्पण विस्तार से निरूपण किया है
पञ्चमहायज्ञविधि तथा आश्रमधर्मनिरूपण : १८२७ पांच महायज्ञों की विधि
शालीनयायावराणामात्मयाजिनां प्राणहुति व्याख्यानं : १८३० शालीन ययावरों को प्राणाहुति की विधि तथा मन्त्रों का निरूपण श्राद्धाङ्गाग्नौकरणाविविधिनिरूपणम् : १८३३
त्रिमधु, त्रिणाचिकेत, त्रिसुपर्ण, पञ्चाग्नि, षडङ्गवित् ज्येष्ठ सामक स्नातक ये पङ्क्ति पावन बताये हैं । इनके द्वारा श्राद्ध में अग्नि कार्य के विधान का निरूपण किया है
१-३०
१-२१२
१-४४
१.३०
१-३१
www.jainelibrary.org