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बौधायन स्मृति ६. यज्ञाङ्गविधिनिरूणम् तथा मूत्रपुरोषाधु पहतद्रव्याणांशुद्धि
वर्णनम् : १७८७ यज्ञ में जिन-जिन द्रव्यों की आवश्यकता होती है उनका निरूपण तथा यज्ञपात्र एवं वस्त्रादिकों की शुद्धि ।।
७. पुनः यज्ञाङ्गविधिवर्णनम् : १७६० आभ्यान्तर तथा बाह्य दो प्रकार के यज्ञ के अङ्ग बताये हैं।
आभ्यन्तर अङ्ग, बाह्य ऋत्विगादि इस प्रकार यज्ञाङ्ग का संक्षिप्त निदर्शन और शुद्धि बताई है।
१-३० ८. ब्राह्मणादिवर्णनिरूपणम् : १७६२ चातुर्वण्यं निरूपण, अनुलोमज की पृथक्-पृथक् जाति अनुलोमज,
प्रतिलोमज की व्रात्य संज्ञा कही गई है। इस कारण व्रात्यता होने से उनको सावित्री उपदेश का अनधिकार कहा गया है १-१६
8. शङ्करजातिनिरूपणम् : १७६३ रथक रादि वर्णशङ्कर जाति की परिगणना कर इनको ब्रात्य कहा है १-१६
१०. राजधर्म : १७६४ वर्णानुकुल मनुष्यों को वृत्ति देना, कर लगाना, ब्रह्महत्यादि महा
पापों का प्रायश्चित्त, पाप के निर्णय में साक्षिता देखे, मिथ्या साक्षी को पाप तथा दण्ड एवं प्रायश्चित्त व्रत
१-४० ११. अष्टविवाहप्रकरण : १७६७ आठ प्रकार के विवाहों की परिभाषा । उन विवाहों में चार शुद्ध
और चार अशुद्ध । जैसा विवाह वैसी ही सन्तान । आसुरादि से अशुद्ध सन्तान । द्रव्य देकर ग्रहण की हई स्त्री पत्नी संज्ञा नहीं पाती है उसके साथ यज्ञादि कर्म नहीं हो सकते हैं १-२२
अनध्यायकाल : १७६८ अनध्याय काल अष्टमी, चतुर्दशी आदि बताई है
२३-४३ १२. पूर्वोक्तानेकविधिप्रकरण : १७६६ संक्षिप्त से धर्म का निर्णय ।
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