SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 124
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ १-१६ बोधायन स्मृति सत्पुत्रप्रसंशा : १८३६ सत्पुत्र का वर्णन किया है "पुत्रेण लोकाञ्जयति" अच्छी सन्तान से पिता स्वर्गादि लोक में विजयी होता है "सत्पुत्रमुत्पाद्याऽऽत्मनं तारयति" सत्पुत्र की महिमा कही है संन्यासविधिवर्णनम् : १८३७ संन्यास की विधि-संन्यास का धर्म विस्तार से निरूपण कर इसी के परिशिष्ट १७ सूत्रों में उसका विधान, "शालीन यायावरी" का आचार, संन्यासी के त्रिदण्ड का माहात्म्य बताया है शालीनयायावरादीनांधर्मनिरूपणम् : १८४४ शालीन और यायावरों की वृत्ति तथा धर्म का निरूपण किया है । शाला में आश्रय करने से शालीन एवं श्रेष्ठ वृत्ति के धारण करने से यायावर । इनकी नौ प्रकार की वृत्ति बताई है। जैसे---१. षनिवर्तनी, २. कौद्दाली, ३. कुल्या, ४. संप्रक्षालनी ५. समूहा, ६. पालिनी, ७. शिलोञ्छा, ८. कापोता, ६. सिद्धा इनके अतिरिक्त दशम वृत्ति भी बताई है। आहिताग्नि तथा यायावर की वृत्ति का वर्णन है पग्निवर्तन्यादिवृत्तीनांस्वरूपकथनम् : १८४६ पनिवर्तन्यादि वृत्तियों का स्पष्टीकरण है, षनिवर्तनी, कोदाली आदि का विशदीकरण है तथा शिलोञ्छ वृत्ति की परिभाषा पचमानकापचमानकभेदेनवानप्रस्थस्यद्वैविध्य वर्णनम् : १८४६ दो प्रकार के वानप्रस्थ-पचमानक और अपचमानक के लक्षण तथा उनके धर्म, वन में रहने का माहात्म्य मुगः सहपरिस्पन्दः संवासस्ते(स्त्वे)भिरेव च । तेरेव सदशीवृत्तिः प्रत्यक्ष स्वर्गलक्षणम् ।। ब्रह्मचारिणअभक्ष्यभक्षणेप्रायश्चित्त: १८५१ ब्रह्मचारी को स्त्री के सहवास तथा निषेध पदार्थों के भक्षण से प्रायश्चित्त का निरूपण १-२० १-२५ १-११ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002787
Book TitleSmruti Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagsharan Sinh
PublisherNag Prakashan Delhi
Publication Year1993
Total Pages636
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy