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बोधायन स्मृति
सत्पुत्रप्रसंशा : १८३६ सत्पुत्र का वर्णन किया है "पुत्रेण लोकाञ्जयति" अच्छी सन्तान से
पिता स्वर्गादि लोक में विजयी होता है "सत्पुत्रमुत्पाद्याऽऽत्मनं तारयति" सत्पुत्र की महिमा कही है
संन्यासविधिवर्णनम् : १८३७ संन्यास की विधि-संन्यास का धर्म विस्तार से निरूपण कर इसी
के परिशिष्ट १७ सूत्रों में उसका विधान, "शालीन यायावरी" का आचार, संन्यासी के त्रिदण्ड का माहात्म्य बताया है
शालीनयायावरादीनांधर्मनिरूपणम् : १८४४ शालीन और यायावरों की वृत्ति तथा धर्म का निरूपण किया है ।
शाला में आश्रय करने से शालीन एवं श्रेष्ठ वृत्ति के धारण करने से यायावर । इनकी नौ प्रकार की वृत्ति बताई है। जैसे---१. षनिवर्तनी, २. कौद्दाली, ३. कुल्या, ४. संप्रक्षालनी ५. समूहा, ६. पालिनी, ७. शिलोञ्छा, ८. कापोता, ६. सिद्धा इनके अतिरिक्त दशम वृत्ति भी बताई है। आहिताग्नि तथा यायावर की वृत्ति का वर्णन है
पग्निवर्तन्यादिवृत्तीनांस्वरूपकथनम् : १८४६ पनिवर्तन्यादि वृत्तियों का स्पष्टीकरण है, षनिवर्तनी, कोदाली आदि का विशदीकरण है तथा शिलोञ्छ वृत्ति की परिभाषा पचमानकापचमानकभेदेनवानप्रस्थस्यद्वैविध्य
वर्णनम् : १८४६ दो प्रकार के वानप्रस्थ-पचमानक और अपचमानक के लक्षण तथा उनके धर्म, वन में रहने का माहात्म्य
मुगः सहपरिस्पन्दः संवासस्ते(स्त्वे)भिरेव च । तेरेव सदशीवृत्तिः प्रत्यक्ष स्वर्गलक्षणम् ।।
ब्रह्मचारिणअभक्ष्यभक्षणेप्रायश्चित्त: १८५१ ब्रह्मचारी को स्त्री के सहवास तथा निषेध पदार्थों के भक्षण से
प्रायश्चित्त का निरूपण
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