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________________ ४० पाराशरस्मति दीर्घ समय तक तपस्या की क्षमता कलियुग के जीवन में नहीं है और अन्न की सावधानी पर ध्यान दिलाया जैसा अन्न खाएगा, उसी प्रकार उसके जीवन की सम्पूर्ण घटना होगी। कलियुग के जीवन की प्रवृत्ति बनाकर ध्यान दिलाया है। ३१-३७ आचार धर्मवर्णनम् : ६२९ "आचार भ्रष्टदेहानां भवेद्धर्मः पराङ्मुख" । मनुष्य आचार से च्युत है तो उसे धर्मपराङ्मुख समझना चाहिए। सदाचार विहित धर्म मर्यादा को नहीं जान सकता। "सन्ध्यास्नानं जपो होम स्वाध्यायो देवतार्चनम् । वैश्वदेवातिथेयञ्च षट्कर्माणि दिने दिने ॥ (३६) षट्कर्माभिरतो नित्यं देवताऽतिपिपूजकः । हुतशेषन्तु भुजानो ब्राह्मणो नावसीदति" ।। (३८) षट् कर्म का निरूपण, अतिथि सत्कार वैश्वदेव कर्मादि का निरूपण और अतिथि का लक्षण ३८-५८ राजा को प्रजा से सर्वस्व शोषण का निषेध ५८-६५ २. गृहस्थाश्रमधर्मवर्णनम् : ६३१ गृहस्थी के धर्माचार का निर्देश "षट्कर्म निरतो विप्रः कृषिकर्माणि कारयेत् । हलमष्टगवं धयं षड्गवं मध्यमं स्मृतम् ॥ चतुर्गवं नशंसानां द्विगवं वृषघातिनाम् । क्षधितं तषितं धान्तं बलीवदं न योजयेत् ॥ होनाङ्ग व्याधितं क्लीव वृषं विप्रो न वाहयेत् । स्थिराङ्ग नीरुजं दृप्तं वृषभं षण्डवजितम् ।। बाहयेद्दिवसस्या पश्चात् स्मानं समाचरेत्” । षट्कर्म सम्पन्न विप्र को कृषि कर्म में जुट जाने का आदेश है, किस प्रकार भूमि में हल से जुताई करे, कितने बैलों से हल जोते तथा बैलों को हृष्टपुष्ट बनाना उसका धर्मकार्य और कितने समय तक बैलों को खेती पर जोते जाए इसका Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002787
Book TitleSmruti Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagsharan Sinh
PublisherNag Prakashan Delhi
Publication Year1993
Total Pages636
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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