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१५.०
विलोम गायत्री मन्त्र का वर्णन
प्राणायाम न करने वाला अवकीर्णी होता है विशेष जिन-जिन मन्त्रों का विधान आता है उनके साथ भी पूरक,
कुम्भक और रेचक क्रम से प्राणायाम करने का विकल्प है । चार्वाक, शैव, गणेश, सौर, वैष्णव और शाक्त जो भी मन्त्र हैं उन उन से प्राणायाम की विधि फल देने वाली है । भिन्नभिन्न विधियों में प्राणायाम की १०, १५, २०, २४, १३, १४ और १६ बार आवृत्ति करने की विधि हैं । वैश्वदेव में १० बार आदि में १० बार अन्त मे प्राणायाम करने का विधान । जहां सङ्कल्प है वहां २ बार और सभी काम्य आदि कर्मों में १०-१० बार आवृत्ति का विधान है । विलो - माक्षरों से गायत्री का प्राणायाम अनन्त कोटि गुणित फल देता है
विश्वामित्रस्मृति
४. मार्जनम् . २६७१
शिर से पैर तक "आपोहिष्ठादि" मन्त्र से मार्जन का फल । अर्ध मन्त्र और पूर्ण मन्त्र मार्जन दो प्रकार का है ऋग्यजुः साम वेद की शाखावालों का मार्जन क्रम
आपोहिष्ठादि के मन्त्र में प्रणव का उच्चारण करते हुए शिर पर मार्जन करे और " यस्यक्षयाय जिन्वथ से नीचे की ओर जल प्रक्षेप करे शिर से भूमि तथा पादान्त मार्जन से अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है । मार्जन की फलश्रुति
५. सार्घ्यदान गायत्रीमाहात्म्यवर्णनम् : २६७४ सन्ध्यावन्दन के समय प्रात: और सायं तीन-तीन अर्ध्य सूर्य को दे, मध्याह्न काल की सन्ध्या में केवल एक ही । तीन अर्घ्य में एक दैत्यों के शस्त्रास्त्र नाश के लिए, दूसरा वाहन नाश के लिए और तीसरा असुरों के नाश के लिए और अन्तिम प्रायश्तिा देकर पृथ्वी की प्रदक्षिणा से सब पापों से छुटकारा हो जाता है । गायत्री के पञ्चाङ्ग का वर्णन प्रायश्चित्ताध्यं की विधि का वर्णन - नाना मन्त्रों के विनियोग एवं ध्यान का वर्णन
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