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________________ विश्वामित्रस्मृति मार्जनम् : २६६० "आपोहिष्ठा मयो भुवः " से मार्जन करे फिर न्यास करे, ऐसा करने से द्विजमात्र शुद्ध होकर ध्यान, जप, पूजा में सब सिद्धियां प्राप्त करते हैं । पञ्चाचमनविधि : २६६१ ब्रह्मयज्ञ में तीन बार आचमन का विधान है । श्रीत, स्मार्त, आचमन को किन-किन स्थलों पर करना इसकी विधि ३. प्राणायाम विधि : २६६३ प्राण और अपान का समयुक्त होना ही प्राणायाम कहलाता है, इसे सन्ध्याकाल और प्रत्येक कर्म के आरम्भ में मन को एकात्र करने के लिए अवश्य करे । नौ बार उत्तम प्राणायाम, ஞ் बार मध्यम और तीन बार अधम कहा गया है। गायत्री मन्त्र और व्याहृतियों के साथ प्राणायाम करना चाहिए पहले कुम्भक फिर पूरक और फिर रेचक, इस क्रम से प्राणायाम करना इष्ट है । सन्ध्या होम काल और ब्रह्मयज्ञ में कुम्भक से आरम्भ कर प्राणायाम करे । प्राणायाम में करने योगाध्यान का वर्णन दश प्रणव एवं गायत्री मन्त्र के साथ इडा और पिङ्गला को छोड़ सुषुम्ना नाड़ी से कुम्भक करे साथ में मन्त्र का स्मरण बराबर होता रहे रेचक और पूरक बिना प्रयास के होते हैं । कुम्भक में प्रयास करना होता है यह अभ्यास से पाक्य है । अनभ्यास से शास्त्र विष का काम करते हैं, अभ्यास से वही अमृत बन जाते हैं । प्राणायाम में चारों अङ्ग ुली और अंगूठा काम में लेना चाहिए । लं. हं, यं, रं, वं इन बीज से पृथिव्यात्मा को गन्ध, आकाशात्मा को पुष्प, वाय्वात्मा को धूप, अग्न्यात्मा को दीप और अमृतात्मा को नैबेद्य प्रदान करे । इस पञ्चभूतात्मक मानसी पूजा से ही प्राणायाम की सिद्धि मिलती है प्राणायाम का अभ्यास सिद्धासन, कुम्भक के साथ और मन्द दृष्टि के रूप में आंखें बन्द करने से शीघ्र सिद्धि प्राप्त होती है । Jain Education International For Private & Personal Use Only ૪૨ २३-३६. ४०-५७ १-३ ४-५ ६-१० ११ १२-२६ ३०-३६ www.jainelibrary.org
SR No.002787
Book TitleSmruti Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagsharan Sinh
PublisherNag Prakashan Delhi
Publication Year1993
Total Pages636
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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