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________________ विश्वामित्रस्मृति ६. द्विविधजपलक्षणम् : २६८१ नैमित्तिक एवं काम्य दो प्रकार के जपों के लक्षण यह सन्ध्याङ्ग के रूप में नदीतीर, सरिकोष्ठ और पर्वत की चोटी पर एकान्त वास से ही अधिक फल देने वाला है १-२ मूलमन्त्र से भूशुद्धि, फिर भूतशुद्धि, फिर रक्षा के लिए दिग्बन्धन करना और गायत्री के न्यास का वर्णन ३-३० कराङ्गन्यासवर्णनम् : २६८५ दश बार मन्त्र का जप कर हृदय को हाथ से स्पर्श कर प्राणसूक्त जपे फिर प्राणायाम करे मुद्राविधिवर्णनम् : २६८७ आवाहन आदि के भेद से १० प्रकार की मुद्राओं का वर्णन, गायत्री जप क आरम्भ की २४ मुद्रा ३३-७१ उपस्थानविधि : २६९० सन्ध्याकाल में सूर्योपस्थान का महत्त्व १-२० ८. देवयज्ञादिविधान, वैश्वदेवकालनिर्णय, पञ्चसूनापनुत्त्यर्थ वैश्वदेव, वैश्वदेवमाहात्म्य : २६६२ वश्वदेव में कोद्रव (कोदो), मसूर, उड़द, लवण और कड़वे द्रव्यों को काम में न लेवे १-२ नाना प्रकार की बलि करने से नाना प्रकार के काम्य कर्मों की सिद्धियां होती हैं। द्विजों के लिए पांच ही क्रम से बलि का विधान है। पहले उपवीत, दूसरे निवीत, तीसरे पितृमेध के लिए बलि दी जाती है ३-१२ वैश्वदेव में ताजा अन्न ही काम में लिया जाए वैश्वदेव मन्त्र के साथ हो या बिना मन्त्र के इसे किसी भी रूप में करना चाहिए; क्योंकि इसको करने वाला अन्नदोष से लिपायमान नहीं होता १७-२४ पञ्चशूनाजनित पापों को जैसे, चूल्हा, चक्की, जल भरने का स्थान, माड आदि के दोषों को दूर करने के लिए इसकी बड़ी आवश्यकता है २५-३६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002787
Book TitleSmruti Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagsharan Sinh
PublisherNag Prakashan Delhi
Publication Year1993
Total Pages636
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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