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पाराशरस्मृति श्रौताग्निहोत्र संस्कार वर्णनम् : ६४३ आहिताग्नि के शरीर छूटने पर उसके श्रीताग्नि से संस्कार १३-३५
. ६. प्राणिहत्या प्रायश्चित्त वर्णनम् : ६४४ प्राणिहत्या का प्रायश्चित्त-हंस, सारस, क्रौंच, टिड्डी आदि
पक्षियों को मारने से जो पाप होता है और शुद्धि नकुल, मार्जार, सर्प आदि को मारने का पाप, और शुद्धि
९-१० भेड़िया, गीदड़ और सूकर मारने का पाप तथा शुद्धि घोड़े, हाथी मारने का पाप, उसका प्रायश्चित्त और शुद्धि
१२ मृग, वराह के मारने का पाप, उसका प्रायश्चित्त और शुद्धि १३-१४ शिल्पी, कारु और स्त्री आदि के घात का पाप, प्रायश्चित्त एवं शुद्धि १५-१६ चाण्डाल से व्यवहार का पाप उसका प्रायश्चित्त एवं शुद्धि
२०-२५ प्रायश्चित्त वर्णनम् : ६४७ ।। चाण्डाल के अन्न खाने का प्रायश्चित्त
२६-३० अविज्ञात में चाण्डाल आदि के यहां ठहर कर जूठे एवं कृमि दूषित अन्न भोजन करने का दोष और उसका प्रायश्चित्त
३१-३८ घर की शुद्धि जिस घर में चाण्डाल रह गए उस घर की शुद्धि । इन स्थानों पर रस, दूध दही आदि अशुद्ध नहीं होते हैं । ३९-४३
ब्राह्मण महत्ववर्णनम् : ६४८ ब्राह्मण के किसी व्रण पर कीड़े पड़ जायें तो उसका वर्णन और उसकी शुद्धि बताई है
"उपवासो व्रतं चैव स्नानं तीर्थं जपस्सपः ।
विप्रः सम्पादितं यस्य सम्पन्नं तस्य तद्भवेत्" ।। ब्राह्मण जो व्यवस्था देते हैं उसके अनुसार चलने का माहात्म्य ४३-५८ : ब्राह्मण के वाक्य तथा उनका माहात्म्य
५६-६१ अभोज्य अन्न, भोजन करते समय बैठने का विधान
६२-६३ बड़ी संख्या में जो अन्न अशुद्ध हो जाय तो उसे त्याज्य नहीं बत. लाया है बल्कि उसे शुद्ध करने का विधान
७. द्रव्यशुद्धि वर्णनम् : ६५१ लकड़ी के पात्र और यज्ञ पात्र तथा इनकी शुद्धि
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