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________________ १४४ वाधूलस्मृति आपोहिष्ठेत्यादि मार्जन मन्त्रों में नौ ओखार के साथ जो मार्जन किया जाता है उससे वाणी, मन और शरीर के नवों दोषों का क्षय हो जाता है ११७-१२० सायंकाल में अर्घ्य जल में न देवे जहां सन्ध्या की जाए वहीं जप भी हो । वेदोदित नित्यकर्मों का किसी कारण अतिक्रमण हो जाए तो एक दिन बिना अन्न खाए रहना चाहिए और १०८ गायत्री मन्त्र के जप दोनों सन्ध्या में विशेष रूप से करे १२१-१२६ सूतक और मृतक के आशौच में भी सन्ध्या कर्म न छोड़े प्राणायाम को छोड़ कर सारे मन्त्रों को मन से उच्चारण करे १३०-१३२ देवार्चन, जप, होम, स्वाध्याय, स्नान, दान तथा ध्यान में तीनतीन प्राणायाम करे १३३-१३४ जप का विधान प्रातःकाल हाथ ऊँचे रखकर, सायंकाल नीचे हाथ कर एवं मध्याह्न में हाथ और कन्धे के बीच में रखकर जप करे नीचे हाथ कर जप करना पैशाच, हाथ बीच में रखकर करने से राक्षस, हाथ बांधकर करने से गान्धर्व और ऊपर हाथ करने से दैवत जप होता है १३५-१३६ प्रदक्षिणा, प्रणाम, पूजा, हवन, जप और गुरु तथा देवता के दर्शन में गले में वस्त्र न लगावे दर्भा के बिना सन्ध्या, जप के बिना दान और बिना संध्या किया हुआ जप सब निष्फल होता है। जप में तुलसी काष्ठ की माला पद्माक्ष तथा रुद्राक्ष की माला प्रशस्त है १४१-१४३ गृहस्थ एवं ब्रह्मचारी १०८ बार बार मन्त्र का जाप करे । वानप्रस्थ तथा यति १००८ बार करें। आहुति के लिए सामग्री का विधान १४४-४५ गृहस्थधर्म २६३७ गृहस्थ को सम्पूर्ण कार्य पत्नी सहित इष्ट है । जिस मनुष्य की स्त्री दूर हो, पतित हो गई हो, रजस्वला हो, अनिष्ट व प्रतिकूल हो उसकी अनुपस्थिति में कोई ऋषि कुशमयी धर्मपत्नी, कोई ऋषि काश की बनी पत्नी को प्रतिनिधि रूप में रखकर नित्यकर्म क्रिया करने की सद्गृहस्थ को आज्ञा देते हैं १४७-४८ १४० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002787
Book TitleSmruti Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagsharan Sinh
PublisherNag Prakashan Delhi
Publication Year1993
Total Pages636
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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