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विष्णुस्मृति
२८. गुरुकुले वसन् ब्रह्मचारिणां सदाचार वर्णनम् : ४५८ इसमें ब्रह्मचारी के नियम, गुरुकुल में रहना, गुरु की आज्ञा पर चलना, को पढ़ना इत्यादि वर्णन किया गया है ।
वेदों
२६. आचार्य (गुरु) कर्तव्यता विधान वर्णनम् : ४६० इसमें आचार्य, ऋत्विक के कर्तव्यों का वर्णन है ।
३०. वेदाध्ययनेऽनध्यायादि वर्णनम् : ४६१
इसमें श्रावण महीने में उपाकर्म करने का विधान और अन्त में उपाकर्म करने का और शिष्य को उत्पन्न करने वाले पिता से दीक्षा देने वाले गुरु का विशेष महत्त्व और शिष्य के लिए आमरण गुरु सेवा का निर्देश है ।
३१. मातापितृ गुरूणाम् शुश्रूषा विधानवर्ण नम् : ४६३ मनुष्य के तीन अति गुरु होते हैं - माता, पिता, आचार्य इनकी नित्य सेवा और उनकी आज्ञापालन का वर्णन है ।
३२. राजा - ऋत्विक्- अधर्मप्रतिषेधी- उपाध्याय पितृ-व्यादीनामाचार्यबद्व्यवहारवर्णनम्, तेषां पत्न्योऽपि मातृवत् माननीयातिः : ४६४
२५
स्तच्छू
राजा, ऋत्विक, उपाध्याय, चाचा, ताऊ, मामा, नाना, श्वशुर और ज्येष्ठ भ्राता इनका सम्मान करना चाहिए । अन्त में बतलाया है कि ये क्रम से विद्या, कर्म, अवस्था, बन्धुत्व, धन इनके मान के स्थान हैं ।
३३. पुंसां के ते शत्रव स्तद्विचार वर्णनम् : ४६६
क्रोध, लोभ ये तीन मनुष्य के शत्रु हैं और नरक केद्वार बताये गये हैं । ३४. मात्रादि गमन पातक परामर्श वर्णनम् : ४६६
मातृ गमन, दुहिता गमन, स्वसा गमन करने वाले अति पातकी होते हैं । उन्हें आग में जलाना चाहिए ।
काम,
३५. महापातक परामर्श वर्णनम् : ४६७
महापातक - ब्रह्महत्या, सुरापान, सुवर्णचोरी और गुरुदार गमन और एक वर्ष तक इनके साथ रहता है इनका वर्णन है ।
३६. ब्रह्महत्या समाः पातकाः : ४६७
इसमें झूठी गवाही देने वाला, गर्भघाती आदि के पाप बतलाये हैं । जो महापातक के समान पाप होते हैं वे बतलाए हैं ।
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