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________________ ४-६ शातातपस्मृति छोटे पापों का वर्णन और प्रायश्चित्त तथा व्रत शान्ति का वर्णन। पांचवें अध्यायमें मातगमन से लेकर भगिनी आदि अगम्या गमन से जो असाध्य रोग होते हैं उनकी शान्ति तथा प्रायश्चित्त ।) ६. अनुचित व्यवहारफलम् : ६१६ पञ्चत्रिंशत् (पैंतीस प्रकार से मरा हुआ पितृगति क्रिया को नहीं पाता है । आकस्मिक मृत्यु बिजलीपात इनको श्राद्ध में लेप भुज कहा है अनायास मृतक की गति न होने से ये प्रेतादि योनियों में जाते हैं और बालकों का हरण होता है अपमृत्यु से जो मरते हैं उनके कारण कौन पाप है, जैसे जो कुमारी गमन करे उसे व्यान मारता है, जो किसी को विष देता है उसे सर्प काटता है, राजा को मारनेवाले को हाथी से मृत्यु होती है, मित्र द्रोही, बक वृत्ति वाले की मृत्यु भेड़िया से होती है अगति प्रायश्चित्त वर्णनम् : ६१८ उन उन पापों का प्रायश्चित्त दिखाया है १७ अपघात करने वालों की नारायणवली का विधान २६ इन पापों की शुद्धि के भिन्न भिन्न प्रकार के दान ३०-५१ ॥ स्मृतिसन्दर्भ प्रथम भाग की विषय-सूची समाप्त ॥ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002787
Book TitleSmruti Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagsharan Sinh
PublisherNag Prakashan Delhi
Publication Year1993
Total Pages636
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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