________________
स्मति सन्दर्भ द्वितीय भाग
पराशरस्मृति पराशर संहिता दो उपलब्ध हैं पराशरस्मृति और बृहत्पराशर । पराशर स्मृति में और बृहत्पराशर दोनों में १२ अध्याय हैं। प्रथम अध्याय में दोनों स्मृतियों में एक जैसा वर्णन "कलौपाराशरीस्मृता" है दूसरे अध्याय से वृहत् पराशर में कुछ विशेष बातें और विचार वर्णन किया गया है। पराशरस्मृति किसी देश विशेष, संप्रदाय विशेष, जाति विशेष को लेकर धर्माख्या नहीं करती है, अपि तु मनुष्यमात्र का पथप्रदर्शित यह स्मृति करती है।
१. धर्मोपदेश तथा उनके लक्षण : ६२५ "मानुषाणां हितं धर्म वर्तमाने कलीयुगे
शौचाचारं यथावच्च वद सत्यवतीसुत !" [वर्तमान समय में मनुष्यमात्र का जिससे हित हो वह धर्म कहिए और ठीक-ठीक रीति से आचारादि की रीति भी बतला दीजिए-ऋषियों के प्रश्न करने पर व्यासजी ने उत्तर दिया कि कलियुग के सार्वभौम धर्म के विकास करने में अपने पिता पराशरजी की प्रतिभा शक्ति की सामर्थ्य कही । पराशरजी निरन्तर एकान्त बदरिकाश्रम की तपोभूमि में आसीन हैं । तपोमय भूमि में तपस्यारूपी साधन के बिना कलियुग के धर्म, व्यवहार, मर्यादा पद्धति का पर्षदीकरण अबैध सूचित किया ऋषियों ने इस बात पर विचार किया कि कलियुग के मनुष्य किसी धर्म मर्यादा की पर्षद बुलाने की क्षमता नहीं रख सकते हैं यावत् तपोमय जीवन से इन्द्रियों की उपरामता न हो जाए अतः इन्द्रिय भोग विलासिता के जीवन वाले वेद शास्त्रपारंगता प्राप्त करने पर भी धर्म, न्याय विधि को नहीं बना सकते हैं। अतः विधि, नियम रूपी धर्म व्यवहार के लिए तपस्या तथा वनस्थली में राग, द्वेष, आदि का विकास परमावश्यक है। पराशर जी के आश्रम पर व्यास प्रमुख सब ऋषि गए
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org