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कात्यायन स्मृति
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पति की आज्ञानुसार चलने से इहलोक और परलोक दोनों में परम सुख प्राप्त होता है।।
१-२३ २०. द्वितीयादिस्त्रीकृतेसति वैदिकाग्निवर्णनम् : १३६६ स्त्री के साथ ही यज्ञ की विधि । स्त्री के मृत होने पर भी गृहस्था
श्रम में रहता हुआ अग्निहोत्र करता रहे । श्लोक दर में श्रीरामचन्द्रजी का उदाहरण दिया है कि उन्होंने सीताजी की प्रतिमा बनाकर उसके साथ यज्ञ किया
१-१६ २१. मृतदाहसंस्कार : १३७१ मृतक का संस्कार
१-१६ २२. दाहसंस्कार : १३७२ मृतक का दाह संस्कार
१-१० २३. विदेशस्थमतपुरषाणांदाहसंस्कार ! १३७३ विदेश में मृत हुए पुरुष के दाह संस्कार
२४. सूतकेकर्मत्यागःषोडशश्राद्धविधान : १३७५ सूतक में सब प्रकार के स्मार्त कर्मों का त्याग किन्तु वैदिक कर्म
हवन आदि शुष्क फलों से करता रहे । सपिण्डीकरण तक सोलह श्राद्ध करने से शुद्धि होती है
२५ नवयज्ञेनविनानवान्नभोजनेप्रायश्चित्तवर्णनम : १३७६ नवान्न भक्षण करने से पहले नवान्न यज्ञ करना चाहिए । बिना यज्ञ में दिये अन्न भक्षण का प्रायश्चित्त
१-१० २६. नवयज्ञकालाभिधान : १३७८ नवयज्ञ का समय-श्रावणी, कृष्णाष्टमी, शरद् एवं वसन्त में नव
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यज्ञ
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२७. प्रायश्चित्तवर्णनम : १३८० अन्वाहार्य तथा कर्म के आदि में शुद्धि के लिये प्रायश्चित्त का विधान
२८. प्रायश्चित्त-उपाकर्मणा फलनिरूपण : १३८२ प्रायश्चित्त उपाकर्म उत्सर्ग की विधि और काल
२६. श्राद्धवर्णनम्, पश्वाङ्गानांनिरूपण : १३८४ पिण्ड श्राद्ध, आम श्राद्ध और गया श्राद्ध का वर्णन तथा श्राद्ध में
कुशा आदि का वर्णन
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