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प्रापस्तम्बस्मृति के प्रधान विषय १. गोरोधनादिविषये गोहत्यायाञ्च प्रायश्चित्तवर्णनम् : १३८७ आपस्तम्ब ऋषि से जब मुनियों ने गृहस्थाश्रम में कृषि कर्म गो
पालन में अनुचित व्यवहार से जो दोष हो जाय उसका प्रायश्चित पूछा । आपस्तम्ब ने बड़े सत्कार के साथ ऋषियों को बताया---औषधि देने में, बालक को दूध पिलाने में सावधानी करने पर भी विपत्ति आ जाय तो उसका दोष नहीं होता है। किन्तु औषधि तथा भोजन भी मात्रा से अधिक देना पाप है ।
दौमासौ पाययेद्वत्सं द्वौमासो द्वौ स्तनौ दुहेत, द्वौमासावेकवेलायां शेषकाले यथाचि । वशरात्रा मासेन गौस्तु यत्र विपद्यते,
स शिखं वपनं कृत्वा प्रजापत्यं समाचरेत् ।। गाय के बन्धन कैसी रस्सियों से कैसे कीले पर बांधना चाहिए
२. शद्ध्यशद्धिविवेकवर्णनम : १३९० शुद्धि और अशुद्धि का वर्णन, जैसे - काम करने वाले मनुष्यों को
जल पानी की छूतपात नहीं होती है । वापी, कूप, तड़ाग जहां खारिया जल निकलता हो वह अशुद्ध नहीं होता है । पेशाब मल तथा थूकने से जल अशुद्ध हो जाता है
१-१४ ३. गहेऽविज्ञातस्यान्त्यजातेनिवेशने-बालादि विषये
च प्रायश्चित्तम् : १३६२ अन्य जाति का परिचय न होने से अज्ञात दशा में घर में रह जाय
तो उस द्विजाति को चान्द्रायण या पराक प्राजापत्य व्रत करने का विधान
१-१२ ४. चाण्डालकूपजलपानादौ संस्पर्श च प्रायश्चित्तम् : १३६३ चाण्डाल के कूप से जल पान पर प्रायश्चित्त
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