________________
वृहद पाराशर स्मृति
स्वर्ण की चोरी का प्रायश्चित
१११-११३ मातृगामी का प्रायश्चित
११४-११५ जिन पापों में चान्द्रायण व्रत किया जाता है उनका वर्णन आया है तथा महापातकियों का प्रायश्चित्त बताया है
११६-१४० गोवध के प्रायश्चित्तों का निर्णय और गौ के मरने के अलग-अलग कारणों पर भिन्न-भिन्न प्रकार के प्रायश्चित्त
१४१-१७१ हाथी, घोड़ा, बैल, गधा इनकी हत्या पर शुद्धि का वर्णन आया है १७२-१७४ हंस, कौआ, गीध; बन्दर आदि के वध का प्रायश्चित्त
१७५-१७८ तोता, मैना, चिड़ी इनके वध करने का प्रायश्चित्त
१७९-१०० बाज, चील के मारने का प्रायश्चित्त
१८१ मंडूक, गीदड़, शाखामृग (बंदर) महिष, ऊंट आदि जंगली जानवरों के मारने का प्रायश्चित्त
१८२-१८७ अभक्ष्य के खाने का प्रायश्चित्त और रजस्वला स्त्री के छ्ये हुए खाने का प्रायश्चित्त
१८८-१९१ दांतों के अन्दर गया हुआ उच्छिष्ठावशेष को खाने का तथा अपना ही जूठा जल पीने का प्रायश्चित्त
१९२ जिस जल में कपड़े धोये जाते हैं उसे पीने का प्रायश्चित्त १९३-१६४ वेश्या, नट की स्त्री, धोबी की स्त्री आदि के सहवास के पापों का प्रायश्चित्त
१६५-२०० कसाई के हाथ का मांस खाने का प्रायश्चित्त
२०१-२०२ जिनके घर का अन्न नहीं खाना चाहिए जैसे वेश्या आदि के घर खाने का प्रायश्चित्त कहा है
२०३.२०८ बाएं हाथ से भोजन करने का दोष
२०६-२११ बाएं हाथ से भोजन करना सुरा तुल्य बताया है
२१२-२१३ चान्द्रायण और पादकृच्छ् व्रत का विधान
२१४-२१५ वेश्याओं के साथ रहने वाला जो अज्ञात कुलशील हो और चाण्डाल
नौकर रखने वाले को पुन: संस्कार का निर्णय दिया है २१६-२२१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org