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________________ भारद्वाजस्मृति १८१ ६-७ जल में खड़ा हुआ जल में ही आचमन करे, जल के बाहर हो तो बाहर अंग-न्यास, देवताओं का स्मरण, आचमन कितना लेना चाहिए, बिना आचमन के कोई कर्म फल नहीं देता अत: इसका बराबर ध्यान रखा जाय ८-४१ ५. दन्तधावनविधिवर्णनम् : ३१०१ मुख शुद्धि के लिए दन्तधावन का विस्तार से निरूपण, दन्तधावन के लिए वज्यं तिथियां एवं समय तथा कौन-कौन काष्ठ ग्राह्य हैं तथा कौन-कौन अग्राह्य हैं इसका निरूपण, मौन होकर दन्तधावन करे १-२५ स्नानविधिका वर्णन २६-३८ ललाट में तिलक का विधान ४०-४५ ६. त्रिकालसंध्याविधानकथनम् : ३१०६ एक ही सन्भ्या के कालभेद से तीन स्वरूप-प्रथम काल की ब्राह्मी दूसरे की (मध्याह्न की) वैष्णवी, तीसरे की रौद्री सन्ध्या कही गई है । यही ऋक्, यजु और सामवेदों के तीन रूप हैं । इनके नित्य ही द्विजमात्र को कर्तव्य इष्ट हैं। सन्ध्या की मुख्य क्रियाओं का विस्तार से परिगणन १-६८ गायत्री के जपविधान का कथन ९६-१४० गायत्री का निर्वचन १४१-१६३ जप यज्ञ की महिमा १६४-१८१ ७. जपमाला विधानकथनम् : ३१२४ जपमाला का विधान और जप माला की प्रतिष्ठा विधि । जप विधान में अर्थ का प्राधान्य और साथ में मनोयोग पूर्वक करने से ही इष्टसिद्धि मिलती है १-१२३ ८. जपे निषिद्धकर्मवर्णनम् : ३१३६ जप में निषिद्ध कर्मों का वर्णन १-१२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002787
Book TitleSmruti Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagsharan Sinh
PublisherNag Prakashan Delhi
Publication Year1993
Total Pages636
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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