________________
१०४
मनुस्मृति स्त्रीधर्मपालन वर्णनम : १७३ नियोग निर्णय
५८-६३ नियोग उसका ही होगा जिसका वाक्य दान करने पर भावी
पति स्वर्गगत (मर जाय) हो जाय । विवाह में कन्या की
अवस्था और वर की अवस्था का वर्णन और विवाह-काल ६४-६६ स्त्री-पुरुष धर्म का वर्णन (विवाह रति का धर्म बताता है।) १०२-१०३
दायभाग वर्णनम् : १७६ दाय विभाग की सूची और दाय विभाजन का काल
सम्पत्तिश्राद्धयोरधिकारित्व वर्णनम् : १८१ अपुत्रक का धन दौहित्र को कन्या को पुत्र समझकर धन देने का निश्चय होने के अनन्तर यदि औरस पुत्र हो जाय तो धन विभाग का निर्णय
१३४ पुत्रार्थ सम्पत्ति विभाग वर्णनम् : १८३ बारह प्रकार के पुत्रों के लक्षण । ६ दायाद और ६ अदायाद हैं १५८-१८१
ऐश्वर्याधिकारिपुत्र वर्णनम् । १८६ दायधन के विभाजन के अवान्तर प्रकार संसृष्टि के धन का बंटवारा १८२-२१५
अनेक दण्ड वर्णनम् : १६० राजा को द्यूत कर्म करने वाले को राष्ट्र से हटाने का वर्णन भ्रष्टाचारी मंत्रियों का दण्डविधान
२३४ महापाप चार हैं-ब्रह्म-हत्या, गुरुतल्प-गमन, सुरापान और स्वर्ण स्तेयी
२३५ पापों का वर्णन और प्रायश्चित्त
२३६ राजधर्म दण्ड वर्णनम् : १६३ प्रजा-पालन से राजा को स्वर्ग प्राप्ति
२५६ साहसिक (मारपीट करने वाले) को दण्ड
२६७ राजः धर्मपालन वर्णनम् : १६७ कर लेने का समय
२२०
३०२
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org