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________________ ܕ݁ܳܘܪ १-१० वसिष्ठ स्मृति २१. ब्राह्मणोगमने शूद्रवश्यक्षत्रियाणां प्रायश्चित्त १५२४ प्रतिलोम विवाह में उग्र प्रायश्चित्त, यथा शूद्र पुरुष ब्राह्मणी के साथ सहवास करे उस शूद्र को अग्नि में जला देना । इस प्रायश्चित्त के देखने से विचार होता है शिष्ट शान्ति प्रधान धर्म प्रवक्ता होने पर भी प्रतिलोम विवाह पर अपने उम्र विचार को प्रकट करते हैं । इसका तात्पर्य यह है कि प्रतिलोम सन्तान से संस्कृति का नाश हो जाता है। संस्कृति के नाश से राष्ट्र का नाश अवश्यम्भावी है १-३६ २२. अयाज्ययाजनादि प्रायश्चित्त १५२७ यज्ञ करने में जिन असंस्कृत पुरुषों का अधिकार नहीं है और लोभवश जो ब्राह्मण उनसे यज्ञ करावें उस यज्ञ से सृष्टि में उत्पात होने के कारण उन ब्राह्मणों को प्रायश्चित्त करने को लिखा है २३. ब्रह्मचारिणः स्त्रीगमने प्रायश्चित्त १५२८ ब्रह्मचारी को स्त्री समागम होने से पातित्य का प्रायश्चित । भ्रूण हत्या, कुत्ता के काटने पर, पतित चाण्डाल से सम्बन्ध करने पर कृच्छ्र व्रत, चान्द्रायणादि व्रतों की व्यवस्था बताई है २४. कृच्छातिकृविधिवर्णनम् : १५३२ कृच्छातिकृच्छ चान्द्रायण की परिभाषा २५. रहस्यप्रायश्चित्तवर्णनम् : १५३२ अविख्यापितदोषाणां पापानां महता तपा। सर्वेषां चोपपापानां शुद्धि वक्ष्याम्यशेषतः ।। गुप्त रखे हुए जो अपने पाप हैं उन रहस्य पापों का पृथक् पृथक् प्रायश्चित्त बताए हैं १-१२ २६. साधारणपापक्षयोपायविधान :१५३४ । प्राणायाम, सन्ध्या, जप, सावित्री जप, पुरुष सूक्त आदि से पापों के क्षय होने का वर्णन किया है । धर्मशास्त्र के पढ़ने में पापक्षय होता है ऐसा बताया है १-४३ १-८ १-२० Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002787
Book TitleSmruti Sandarbha
Original Sutra AuthorN/A
AuthorNagsharan Sinh
PublisherNag Prakashan Delhi
Publication Year1993
Total Pages636
LanguageSanskrit, Hindi
ClassificationBook_Devnagari & Literature
File Size10 MB
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