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याज्ञवल्क्य स्मृति
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के धन को दूसरा आदमी बेच लेबे तो धनवाले को मिल जाय और खरीददार अपना मूल्य ले जावे । खोया हुआ या गिरा हुआ द्रव्य किसी को मिल जाय तो उस वस्तु को पुलिस में जमा न करने पर पाने वाला दोष का भागी होता है । एक मास तक कोई न लेवे तो वह धन राजा का हो जाता है १७१-१७७
दत्ताप्रदानिकप्रकरणवर्णनम् .. १२८८ अपने घर में जिस वस्तु को देने से विरोध न हो तथा स्त्री और
बच्चों को छोड़कर गृहपति सब दान में दे सकता है । सन्तान होने पर सब दान नहीं कर सकता है तथा दी हुई वस्तु फिर दान नहीं हो सकती।
१७८-१७६ क्रीतानशयप्रकरणवर्णनम् : १२८८ क्रीतानुशय अर्थात् मूल्य लेने पर वापस किया जा सकता है । दस
दिन तक बीज (अन्न) लौटाया जा सकता है । लोहे की चीजें एक दिन, बैल लेने पर पांच दिन, रत्न की परीक्षा आठ दिन तक, गाय तथा अन्य जीव जन्तु तीन दिन तक, सोना आग में तपाने पर घटता नहीं है और चांदी दो पल कम हो जाएगी इस प्रकार खरीदी हुई वस्तु तीन दिन तक वापस की जा सकती है
१८०-१८४ संवित् व्यतिक्रम (अपने निश्चय को तोड़ना) जैसे बल पूर्वक किसी को पकड़कर गुलाम बना लिया हो।
निजधर्माविरोधेन यस्तु सामयिको भवेत् ।
सोऽपि यत्नेन संरक्ष्यो धर्मो राजकृतश्च यः॥ अपने धर्म से मिला हुआ जो समय का धर्म और राजा के धर्म को
भी पालन करना चाहिए। जो समुदाय का धन ले और जो अपनी प्रतिज्ञा को तोड़ दे उसका सब कुछ छीनकर देश से निकाल देवे
१८५-१६५ वेतनदानप्रकरणवर्णनम् : १२६० जो पहले वेतन ले ले और समय पर उस काम को छोड़ दे उस से दूना धन लेना चाहिए
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