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होती
वृहद पाराशर स्मृति जिनका अन्न नहीं खाना चाहिए उनका वर्णन
३२३-३२६ नाई जो अपने यहां नौकर हो उसका अन्न लेने में दोष नहीं और तेल या घृत से बनी हुई चीज बासी होने पर भी दूषित नहीं
३२७ आपत्तिकाल में छूत का दोष नहीं होता है
३२८-३३० जो वस्तु म्लेच्छ के वर्तन में रहने पर भी अपवित्र नहीं होती, जैसे
घी, तेल, कच्चा मांस, शहद, फल-फूल इत्यादि उनका वर्णन ३३१-३३५ किस धातु के बर्तन की किससे शुद्धि होती है उसका वर्णन आया
है। आत्मा की शुद्धि सत्य व्यवहार और सत्य भाषण से ही होगी प्रायश्चित्त आदि से नहीं। सड़क का कीचड़, नाव और रास्ते में घास इत्यादि ये वायु और नक्षत्रों से ही शुद्ध हो जाते हैं ।
३३६-३४२ ____. व्रतोपवासविधि वर्णनम् : ८६२ चान्द्रायण व्रत, जैसे शुक्लपक्ष में एक ग्रास की वृद्धि और कृष्णपक्ष
में एक-एक ग्रास का ह्रास इसको ऐन्दव व्रत कहते हैं । इस प्रकार विभिन्न चान्द्रायण व्रत कहे गये हैं । जैसे शिशु चान्द्रा
यण और यति चान्द्रायण आदि कृच्छ्र व्रत, तप्त कृच्छ्र, सांतपन, महासांतपन, प्राजापत्यकृच्छ्र,
पशुकृच्छ्, पर्णकृच्छ, दिव्य सांतपन, पादकृच्छ , अतिकृच्छ,, कृच्छातिकृच्छ और परातिवृत सौम्य कृच्छ
६-२१ ब्रह्मकूर्च का विधान, पंचगव्य बनाने का मंत्र और उनकी विधि २२-३२ ब्रह्मकूर्च के महात्म्य
३३-३५ उपवास से पापों की शुद्धि और जितने चान्द्रायण व्रत वर्णन किये .. गये हैं इनके मनुष्य स्वेच्छा से भी करे तो जन्म-जन्मान्तर के पाप दूर होकर आत्मशुद्धि होती है
३६-४३ १०. सर्वदान विधि वर्णनम् : ८६६ व्यास तथा वशिष्ठजी ने जो दान विधि बताई है उसका फल
१-२ दान का माहात्म्य, पृथक्-पृथक् दान करने का विवरण जैसे अन्नदान,
जलदान, गृहदान, बैलदान, गोदान, तिलधेनु, घृतधेनु, जलधेनु,
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