________________
१-२३
लघुहारीत स्मृति
१. वर्णाश्रमधर्मवर्णनम् : ९७४ ऋषिगणों का हारीत ऋषि से सम्वाद-ऋषियों ने वर्णाश्रम धर्म
तथा योगशास्त्र हारीत से पूछा जिसके जानने से मनुष्य जन्ममरण रूप बन्धन को तोड़कर संसार से मुक्त हो जाय । इस अध्याय के नवम् श्लोक से हारीत ने सृष्टि का वर्णन किया, भगवान शेषशायी समुद्र में शयन कर रहे थे उस समय ब्रह्मा की उत्पत्ति से प्रारम्भ कर जगत की उत्पत्ति तक वर्णन किया। श्लोक तेईस में लिखा है जो धर्मशास्त्र न जाने उसको दान न देना । संक्षेप में ब्राह्मण का धर्म इस अध्याय में कहा गया है
२. चतुर्वर्णानां धर्मवर्णनम् : ९७७ क्षत्रिय तथा वैश्य का धर्म बताया गया है। क्षत्रिय का धर्म प्रजा
पालन, दान देना, अपनी मार्ग में ही रति रखना, नीतिशास्त्र में कुशलता और मेल करना तथा लड़ना इसके तत्त्व को जाने । वैश्य का धर्म है गोरक्षा, कृषि और वाणिज्य । मनुष्य को स्वदार निरत रहना चाहिये
३. ब्रह्मचर्याश्रम धर्मवर्णनम् : ९७६ उपनयन संस्कार के बाद विधिपूर्वक अध्ययन करना और अध्ययन
विधि के विरुद्ध करना निष्फल बताया गया है ब्रह्मचारी के नियम एवं नैष्ठिक ब्रह्मचारी को विवाह करना और
संन्यास करने का निषेध बताया गया है । इस प्रकार ब्रह्मचारी के धर्म का वर्णन बताया गया है
१-१५
५-१४
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org