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लोहितस्मृति
पिष्ट के जल से मिला कर होम कर्मादिक करे । या फिर प्राप्त मधु से सब काम सिद्ध करे, किसी भी रूप में फल, पत्र और द्रव्य आदि से श्राद्ध कार्य किया जाय । इनके अभाव में आपोशानादिक क्रियायें जल से और अन्न से सम्पादन कर पिण्ड प्रदान करे और जल में विसर्जित करे अविशिष्ट को काम में लें फिर दूसरे दिन तर्पण करे । आपत्कल्प के इस विधान को शान्ति के समय काम में न ले । शुद्ध अन्न का प्रयोग जो अपनी अच्छी कमाई से लाया गया ही विहित है; सद्रव्य के द्वारा ही श्राद्ध करने का विधान उसका पाक भी श्राद्धकर्ता की स्त्री द्वारा शुद्धता से किया हुआ होना चाहिए । भावशुद्ध, विधिशुद्ध, और द्रव्यशुद्ध पाक ही श्राद्ध में ग्राह्य है ३६४-४०६ श्राद्धे पाककर्तारः २७३६
धर्मपत्नी, कुलपत्नी जो वंश में विवाहित हो, पुत्रवती हो, मातायें सम्बन्धियों की स्त्रियाँ, बूआ, बहिन, भार्या, सासु, मामी, भाई की स्त्रियाँ गुरुपत्नियाँ और इनके न मिलने पर स्वयं श्राद्ध में पाक करने वाले को प्रशस्त कहा है
रण्डापाक और बन्ध्यापाक गर्हित बतलाया है हां कुल को कोई ऐसी स्त्रियां करने वाली न हो तो उपर्युक्त सभी माताओं से पाकक्रिया सम्पन्न हो सकती है
मृतकार्ये कर्तुरनुकल्पनिषेधः २७४१
स्वयं के लिए ही मृतकार्य के और्ध्वदेहिक कार्य का विधान कर्त्तावृतस्याधिकारः २७४२ अद्भुत ( अनाधिकार) कर्म अकृत कर्म के समान है
विधवानां निन्दा २७४३
विधवाओं को स्वतन्त्र रहने से निन्दित कहा है अतः पतिगृह या पितृगृह में ही रहना आवश्यक है
रण्डाया अस्वातन्त्र्यम् २७४६
रण्डा की सम्पत्ति का अधिकार, वह उसके बेचने आदि की अधिकारिणी नहीं
कई रण्डाओं के भेद
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४०७-४२०
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४२२-४२६
४२७-४३०
४३१-४४४
४४५-४७२
४७३-४८२ ४८३-४६३
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