________________
अङ्गिरसस्मृति
देशान्तर की परिभाषा ६० योजन दूर या २४ योजन अथवा ३०
योजन दूर को देशान्तर बताया है या बोली का अन्तर या पर्वत का व्यवधान तथा महानदी बीच में पड़ जाती हो तो देशान्तर कहा जाता है
१३६-१४० शुद्धाशुद्धिवर्णनम् : २६४७ आशौच का विशेष रूप से वर्णन-सूतक एवं मृतक आशौच का
प्रारम्भ कब से माना जाय इसका निर्णय । रजस्वला के मरने पर तीन रात के बाद शवधर्म का कार्य सम्पादन किया जाय । शुद्धाशुद्धि क वर्णन
१४१-१६३ स्पृष्टास्पृष्टि कहां नहीं होती इसका वर्णन दिन में कैथ की छाया में, रात्रि में दही एवं शमी के वृक्षों में
सप्तमी में आंवले के पेड़ में अलक्ष्मी सदा रहती है अत: उनका
सेवन न करे शूर्प (सूप) की हवा, नख से जलबिन्दु का ग्रहण केश एवं वस्त्र गिरे __ हुए घड़े का जल और कूड़े के साथ बुहारी इनसे पूर्वकृत पुण्य
का नाश होता है जहां कहीं भी शुद्धि की आवश्यकता हो वहां-वहां तिलों से होम
एवं गायत्री मन्त्र के जप से शुद्धि कही गई है
१६३
१६६
धाङ्गिरसस्मृति
पूर्वाङ्गिरसम्
आङ्गिरसम्प्रति ऋषीणांम्प्रश्न : २६४६ धर्म का स्वरूप वर्णन वैदिक कर्मों को पुराणोक्त मन्त्रों से न करे
५-६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org