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इति क्षणिकमति सम्बोधन । आगे कर्त्तावादीको सम्बोधन का सम्वाद लिखिये है.. केई मतवारे, नवीन आत्मा उपजावतहारा मान हैं। ऐसा कहैं है जो कोई नवीन आत्मा बनाय-बनाय प्रथिवी धरता जाय है, ऐसा कोई भगवान है। याही भगवान की जब इच्छा होय तब आत्माकों हरे है। जो | उपजावे हैं सो ही मारे है। जो रोसा कहै हैं ताकौं कहिये है। हे भाई! जात्मा कोई का बनाया बनताव उपजाया
उपजता, तो लौकिक में सन्तान की उत्पत्ति के निमित विवाहादि काहे कौं करते । जो कोई पुरुष नवीन जात्मा बनावै था ताही का सेवा करते। जब वह आत्मा का पैदा करनहारा राजी होता, तब सौ-पचास तथा लाख-दो लाख क्षौहणी बन्ध आत्मा कर देता। जेसीजाको सेवा देखता, तस आत्मा बनाय देता। तौ लोक, चाकर फौज काह की राखते । अरु विवाहादिक करिक कुटुम्बादिक की वृद्धि काहै कौं करते । सो ऐसी प्रवृत्ति अनादिकाल तें कोई सनी नहा कि कोऊ ने कोई कैंदसबीस आत्मा बनाय दय। अरु अब कोई बनावनेवाला नाहीं कि वह फलाना तथा कोई देव-दानव नवीन जीव बनावै है। कदाचित् तेरे ऐसा ही हठ होय जो, कोई जीव का कर्ता है तो हम तोकौं पूछे हैं। कि उस कर्ता ने जब पहले कोई ही जीव नहीं बनाये थे। तब संसार सृष्टि थी या नाहीं। या वह कर्ता अकेला ही था और कहौ कि उस कर्ता ने पहले कौन-सा जीव बनाया था, ताके पीछे कौन-सा बनाया। अब नई वस्तु बनाइय है सोई काहू की नकल बनाइए है। सो प्रथम कोई वस्तु होय तो बनावै। जैसे कोई सिंह का आकार बनावै है। तौ प्रथम कोऊ सिंह होय तो ताकौ देखि, ताकी नकल का सिंह बनावै है। बिना नकल नवीन वस्तु होती नांहीं। सो कर्ता नै जीव किया, सो कौन की नकल बनाया और आत्मा, बनाया होघ है तो वह परब्रह्म-जात्मा कं किसने बनाया। कर्ता का कर्ता बताओ और तुम कहोगे जो सृष्टि तौ अनादि की है और कर्ता भी अनादि का है। तो है भाई! जहाँ अनादि सृष्टि होय, तहाँ नवीन कर्ता का अभाव आया। संसार स्वयंसिद्ध अनादि-निधन है अनादिकाल का है। अरु तुम स्वयंसिद्ध आत्माकों मानते नाहीं। आत्मा नया होता-उपजता मानौ हौ। सो के तो कोई कर्ता बताओ जाने सृष्टि की है तथा सृष्टि जब इस | कर्ता ने नहीं बनाई थी तब कटू था कै नाही था । अरु तुम कहोगें पहले कछू नहीं था, कर्ताने बनाई तब भई है,
तो पहले शन्यता जावगी। जो कर्ता बिना भी संसार रह्या था तो ऐसे कहने मैं तुमारे कर्ता का अभाव हो गया।