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भाव-मान जानना । यात अल्प भाव-मान नाहीं और इस जघन्य भाव तें एक-एक ज्ञान अंश बढ़ते एक अंश घाटि केवलज्ञान पर्यन्त मध्य भाव-मान के भेद हैं और सर्व तीन काल की जाननहारा अन्तरजामी सर्व के
केवलज्ञान है, सो उत्कृष्ट भावमान है। ये तीन भेद भाव-मान के जानना । ४। ऐसे सामान्य च्यारि भेद || मान के जानना । इति ।
जागे अजिकाजी के च्यारि गुण कहिये हैं। प्रथम नाम-लजा।। विनय । २ । वैराग्य ।३। शुभाचार ।। इनका अर्थ प्रथम अर्जिकाजी का रहने का स्थान बतादें हैं। सो जहां अर्जिकाजी के रहने का स्थान होय सो मगर त अति दूर नहीं होय । बहुत नजदीक भी नहीं होय । ऐसा यथायोग्य कोई मध्य स्थान होय तहाँ तिष्ठे और जब अाहार कौं नगर में जाय तौ अकेली नहीं जाय, कोई बड़ी अर्जिकाजी के साथ जाय। सो भी मौन सहित, विनय ते, अङ्ग संकोचती, नीची दृष्टि किरा, ईा समिति सहित, नगर में भोजन कों जाय। तन को छिपारा रहे, अङ्गोपाङ्ग प्रगट नहीं दिखावै। एक पट ते सर्व तन को आच्छादित राखती, लड्डा सहित प्रवृत्ते, सो लज्जा मुरा कहिये।। और अजिका जी आचार्य के दर्शन को जांय, तौ पांच हाथ अन्तरसे विनय सहित नमस्कार करैं हैं। उपाध्याय जी के दर्शन को जांय, तब षट् हाथ से नमस्कार करें हैं। साधुजी के दर्शन कौं अर्जिका जी जाय, तज सात हाथ के अन्तर ते नमस्कार करें। सो अर्जिका जो इन गुरौं को नमस्कार करें, तब पंचांग नमस्कार करें। अर्जिका जो को गुरुन पै कोई प्रश्न करना होय, तौ अकेली जाय, नहीं करें। एक बड़ी अर्जिका कं अपना प्रश्न कहै, जो इस प्रश्न का उतर गुरु के मुख से सुन्या चाहौं हौं ऐसा कहि, बड़ी अर्जिका जो को अगवानी करि, प्रश्न करावै और भी इनकों आदि देव, गुरु, धर्म, विर्षे योग्य विनय सहित रहै, सो विनय गुरा है।२। और निरन्तर वैराग्य बढ़ावने के अर्थ, अनेक तप करता। यत्र ते संयम-ध्यान करना। निरन्तर संसार
की अनित्यता का विचार करना। भीगन को भुजङ्ग समानि जानना। तनकौं सप्त धातुमयी जान, ताकै धारण ते । चित्त की उदासीनता, इत्यादिक मावन सहित विरक्त भाव रहना, सो वैराग्य गुण है। ३. और परम्पराय जिन
आज्ञा प्रमाण कही है जी अजिंका के प्राचार की प्रवृत्ति, ताही प्रमाण क्रिया करनी, सो शुभ आचार गुरु है।४। इन च्यारि राय सहित होय. सी सतीन में परम शिरोमणि, धर्म मुर्ति मजिका जानना । इति आर्थिका गुरा। .