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विजयराज, श्रीचन्द्र, नलराजा, हनुमान, बालराजा, वासुदव, प्रद्युम्र, नागकुमार, श्रापालार जम्बुस्यामा । य
गील काम काहे : सेमंतीवरादि मांगनखर कह्या । सो अन्त के महावीर स्वामी के मोक्ष गये पीछे, जब ||६०५ वर्ष गये। तब राजा वीर विक्रमादित्य भये और भगवान के मोक्ष गये पोछे, हजार वर्ष बाद कलङ्की भया।
सो या भौति पञ्चमकाल की मर्यादा में २२ कलंकी, २१ उपकलंकी, ऐसे ४२ राजा धर्म नाशक होयगे। तहाँ, अन्त का कलंकी, पञ्चमकाल के अन्त में, जलमथ नाम होयगा। ता समय में भो च्यारि प्रकार के संघके, च्यारि जीव रहेंगे। तिनके नाम-तहां इन्द्रराज नाम आचार्य के शिष्य, वीरांगद नाम यतीश्वर होंगे।। और सर्वश्री नाम अर्जिका हो है। २ । अनिल नामा महाधर्मात्मा श्रावक हो है। ३। और पंगुसेना नाम श्राविका हो है।४। ये मुनि, आर्थिका, श्रावक, श्राविका, च्यारि मनुष्य, अन्तिम धर्मात्मा हैं । इन पीछे, धर्मी जीवन का अभाव हो है। इनके सम्मथ, जलमथ नामा कलंकी, अपने मन्त्रिन से पूछेगा। भो मन्त्री! कोई मेरी आज्ञा रहित भी है, अक सर्व जीव मेरी आज्ञा माने हैं ? तब मन्त्री कहेंगे। नाथ! तुम्हारी आज्ञा सर्व जीव मानें हैं। एक वीतरागी मुनि, तुम्हारी जाना में नहीं हैं। तब राजा कहेगा। मुनि कहा करें हैं ? कहां रहैं हैं ? तब मन्त्री कहेगा। वन में रहैं हैं। तन तें भी निष्प्रेम हैं। शत्रु-मित्र, तृण-कश्चन, उन्हें समान हैं। महावीतराग सौम्पष्टि हैं। भोजन समय, श्रावकन के घर अनेक दोष टाल, शुद्ध-प्रासुक आहार लेय ध्यान में लीन रहैं हैं। सो यति कोई की आज्ञा में नहीं हैं। तब कलंकी कहेगा । हमारी बस्तीमैं जब भोजन लेय तब प्रथम ग्रास, हासल (कर)का देंथ । तब मुनि के भोजन में से प्रथम ग्रास लेंयगे। तब यति अन्तराय करि वन में जाय, सन्यास धरि, तीसरे दिन पर्याय छोड़, कार्तिक बदी अमावस्या के दिन, एक सागर को आयु, सहित स्वर्ग में देव होयगे और तब ही ये बात सुनि करि बाको आर्थिका, श्रावक, प्रायिका-न्ये तीन जीव संन्यास धरि, ताही स्वर्ग में महाअद्धि धारी देव उपजेंगे। ता दिन ही प्रथम पहर, धर्म-नाश होयगा। आर्यखण्ड में धर्म का अभाव होयगा और ता दिन के मध्य
राज्य का नाश होयगा। ताही दिन के अन्त समय अग्नि नाश होयगी। आर्यखण्ड में अग्नि नाहीं मिलेगी। वस्त्र नाश होयगे। तब सर्व नग्न रहेंगे और अन्न नाश भये, सर्व जीव मांसाहारी होंगे। मुनिकों उपसर्ग जानि, । असुरेन्द्र वाय, कलंकीको वन से मारेगा। सो मर कर कुगति जायगा। पीछे सर्व अन्ध होयगे। महाक्रोधी
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